मुंशी प्रेमचंद्र

 मुंशी प्रेमचंद्र

प्रसिद्ध कहानीकार एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म सन 1880 में वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। आपका वास्तविक नाम धनपतराय था। आपको नवाब राय के नाम से भी जाना जाता था। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप एक विद्यालय में अध्यापक बन गए। स्वाध्याय के बल पर बी.ए. उत्तीर्ण करके शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर हो गए। सन 1920 में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर आपने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और जीवन भर स्वतन्त्र रूप से लेखन - कार्य में संलग्न रहे। इस बीच अपने 'मर्यादा' पत्र और 'माधुरी', 'हंस', 'जागरण' मासिक पत्रिका का सम्पादन कार्य भी किया। सन् 1936 में आप का निधन हो गया।

 प्रमुख रचनाएं - आपकी प्रमुख है रचनाएं निम्नलिखित हैं -

(अ)  कहानियाँँ - 'मानसरोवर' के आठ खंडों में तथा 'गुप्त धन' में आपकी 300 से भी अधिक कहानियां संकलित हैं।
(ब) उपन्यास - वरदान, प्रतिज्ञा, सेवा - सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, गबन, कर्मभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गोदान।
(स) नाटक - कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
(द)  निबंध संग्रह -  स्वराज के फायदे,  कुछ विचार, साहित्य का उद्देश्य।
(य)  जीवनियाँँ - महात्मा शेखसादी, दुर्गादास, कलम, तलवार और त्याग।

भाषा - शैली -

प्रेमचंदजी ने अपनी रचनाओं में हिंदी की खड़ी बोली के सरल, सहज, बोद्धगम्य एवं व्यवहारिक रूप को अपनाया है। उर्दू, फारसी के शब्दों के प्रयोग से भाषा में आकर्षण एवं प्रभाव है। मुहावरे एवं लोकोक्तियां के प्रयोग से  सजीव हो उठी है।
                 आपने परिचयात्मक, विचारात्मक, भावनात्मक, विश्लेषणात्मक, अभिनयात्मक  आदि विविध शैलियों का प्रयोग किया है। आपकी शैली हिंदी - उर्दू भाषा की मिश्रित शैली है।

साहित्य में स्थान -

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद जी उपन्यास सम्राट और युग प्रवर्तक कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं। आपकी कहानियों में दीन - दुखियों, महिलाओं, ग्रामीणों तथा समाज के अन्य तिरस्कृत लोगों के प्रति जन - जागरण तथा जन चेतना लाने का भाव दिखलाई देता है। आपके उपन्यास भारतीय जन जीवन की समस्याओं के विचारपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं। प्रेमचंद जी विश्व साहित्य में सदैव अमर रहेंगे।
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