जीवन परिचय -
रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी लाल का जन्म सन् 1595 ईस्वी में बसुआ गोविंदपुर, जिला ग्वालियर में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। इनकी बाल्यावस्था बुंदेलखंड में और तरुणावस्था ससुराल में मथुरा में बीती थी। आप जयपुर के राजा महाराजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात बिहारी भक्ति और वैराग्य की ओर उन्मुख हो गए। राजदरबार छोड़कर वृंदावन चले गए। वहीं सन 1663 ईस्वी में आप का निधन हो गया।
रचनाएं -
बिहारी की एकमात्र कृति 'बिहारी - सतसई' उपलब्ध है। जिसमें 713 दोहे संकलित हैं।
भाषा शैली -
बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। जिसमें पूर्व हिन्दी, बुंदेलखंडी, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। शब्द - चयन की दृष्टि से बिहारी अद्वितीय हैं। मुहावरों और लोकोक्तियों की दृष्टि से भी उनका भाषा प्रयोग अद्वितीय है।
बिहारी जी ने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है। इसमें समाज - शैली का अनूठा योगदान है। दोहा आपका सर्वाधिक प्रिय छंद है। आपने संपूर्ण काव्य इसी छंद में लिखा है। अलंकारों के प्रयोग में बिहारी दक्ष थे। उनके काव्य में श्लेष रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है।
बिहारी जी ने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है। इसमें समाज - शैली का अनूठा योगदान है। दोहा आपका सर्वाधिक प्रिय छंद है। आपने संपूर्ण काव्य इसी छंद में लिखा है। अलंकारों के प्रयोग में बिहारी दक्ष थे। उनके काव्य में श्लेष रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान -
रीतिकालीन कवियों में बिहारी अपने ढंग के अद्वितीय कवि हैं। सौन्दर्य - प्रेम के चित्रण में, भक्ति एवं नीति के समन्वय में, ज्योतिष - गणित - दर्शन के निरूपण में तथा भाषा के लाक्षणिक एवं मधुर व्यंजक प्रयोग की दृष्टि से बिहारी बेजोड़ हैं। आपकी विषय - वस्तु श्रृंगार केंद्रित है। सरस दोहों की रचना में आप विख्यात है। आपके दोहों में श्रृंगार का बड़ा मनोहारी और अपूर्व चित्रण मिलता है। भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से इनका काव्य श्रेष्ठ हैंं। पंडित पद्मम सिंह शर्मा के शब्दों में, "बिहारी के दोहे रस के सागर हैं, कल्पना के इन्द्रधनुष है, भाषा के मेघ हैंं। उनमें सौन्दर्य के मारक चित्र अंकित है।" ग्रियर्सन ने बिहारी की प्रशंसा में लिखा है - "बिहारी भारत के थामसन हुए हैं।