छन्द भाग - 1

  • छन्द किसे कहते हैं?

छन्द को वृत्त या पिंगल भी कहते हैं। छन्द वह रचना है, जो वर्ण अथवा मात्रा की संख्या से नियमित होती है। गेय, लय और तालबद्ध कवित्व का नाम छन्द है। अथवा लय, गति और यति सहित रचना को 'पद्य — रचना' या 'छन्दो—बद्ध रचना' कहा जाता है। 

  • छन्द का क्या महत्व या उपयोगिता है?

 जिस तरह किस रमणी के पैरों में पायजेब बॅधे होन पर उसके पैरों की शोभा बढ़ जाती है, उसी प्रकार छन्द से काव्य का सौन्दर्य बढ़ जाता है। छन्द के द्वारा कविता में लय, तुक, गति, यति, आदि का समावेश होता है। छन्दोबद्ध रचना कर्णप्रिय और मधुर होती है। इसका श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसे पढ़ने में आनन्द आता है। इसे समझने और कण्डस्थ करने में सुविधा रहती है। छन्दों के तालबद्ध गायन में श्रोताओं के चित्त को आकर्षित करने की अपूर्व शक्ति होती है। अत: गेयता, भावाभिव्यक्ति और नाद—सैन्दर्य की दृष्टि से छन्द की महत्ता एवं उपयोगिता निर्विवाद है। 

  •  काव्य में चरण किसे कहते हें?

काव्य पंक्तियों में विभक्त रहता है और पंक्तियॉ चरण में। प्राय: छन्द में चार चरण होते है। इन्हें पद या पाद भी कहते हैं। कुछ—कुछ काव्य छह चरण वाले भी होते है, जैसे — छप्पय, कुण्डलिया आदि। छन्द का एक चरण एक ही पंक्ति में लिखा जाता है, किन्तु दोहा, सोरठा आदि छन्दों में दो चरण एक ही पंक्ति में लिखे जाते हैं, इसलिए चार चरण वाले होने पर भी इन छन्दों की पंक्तियॉ दो ही होती हैंं। दोहा, सोरठा आदि छन्दों में प्रथम और तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय और चुतुर्थ चरण को सम चरण कहते है।  

  • मात्रा किसे कहते हैं? मात्रा — गणना के क्या नियम हैं?

किसी वर्ण के उच्चारण करने में जो समय लगता है, उसे 'मात्रा' कहते है।
मात्रा दो प्रकार की होती हैं — हस्व, दीर्घ। इन्हें क्रमश: लघु तथा गुरू मात्रा कहते हैं। लिखने में लघु का संकेत खड़ी रेखा (I) तथा गुरू का संकेत वक्र रेखा या अंग्रेजी भाषा के एस (S) से होता है। 
मात्रा — गणना के नियम — लघु और गुरू मात्रा जानने या गणना करने के मुख्य नियम इस प्रकार हें — 
  1. अ, इ, उ और ऋ — ये चारों स्वर लघु होते हैं।
  2. अ, इ, उ और ऋ की मात्रा वाले अक्षर भी लघु होते हैं। जैसे — क, कि, कु,। चन्द बिन्दु वाले हस्व स्वर भी लघु होते हें। जैसे — हॅ।
  3. आ, ई, ऊ और ऋ इत्यादि दीर्घ स्वर और इनसे युक्त व्यंजन गुरू होते हैं। जैसे — राजा, रानी आदि। 
  4. ए, ऐ, ओ, औ — ये संयुक्त स्वर और इनसे मिले व्यंजन भी गुरू होते हैं। जैसे — — ऐसा, ओला, नौका, औरत आदि। 
  5. अनुस्वार — युक्त वर्ण गुरू होते हैं। जैसे — संसार, संन्यास। परन्तु चन्द्रबिन्दु युक्त वर्ण गुरू नहीं होते हैं।
  6. विसर्ग — युक्त वर्ण भी गुरू होते हैं। जैसे — दु:ख, प्रात:काल, स्वत: आदि। 
  7. संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण गुरू माना जाता है। जैसे — भक्त, सत्य, धर्म, कुत्ता आदि।  

  •  यति किसे कहते हैं?

छन्द के प्रत्येक चरण में उच्चारण करते समय मध्य या अन्त मेें जो विराम होता है, उसे 'यति' कहते हैं। 

  • ​गति किसे क​हते हैं?

छन्द को पढ़ते समय अनुभव होने वोल पद—प्रवाह को 'गति'कहतेे हैं। 

  • तुक किसे कहते हैं?

चरणों के अन्त में होने वाली वणों की आवृत्ति को 'तुक' कहते हैं। तुक से छंद लयबद्ध होता है और हदय में आनंद उत्पन्न करता है।  

  • गण किसे कहते हैं? स्वरूप स्पष्ट कीजिए।

तीन अक्षरों (स्वर सहित व्यंजनों) का एक गण होता है। वार्णिक छन्दों में वर्ण की गणना की जाती है।
वर्णो की लघुता और गुरूता के विचार से गणों के आठ रूप होते है। इन गणों के नाम तथा लक्षण निम्नानुसार हैं —
गण—नाम         सूत्र                संकेत                      उदाहरण
यगण               यमाता              ISS                        यशोदा, सरोता
मगण              मातारा              SSS                         मायावी, पॉचाली
तगण              ताराम              SSI                           तालाब, बागीश
रगण               राजमा              SIS                          साधना, कामना
जगण             जभान               ISI                          जयेश, हरीश
भगण            भानस                SII                           भारत, नायक
नगण            नसल                 III                           नगर, मगर
सगण            सलगा                IIS                         कविता सरिता
गण का सूत्र है — ''यमाता राजभान सलगा।''
उक्त सूत्र द्वारा हम जिस गण का स्वरूप देखना चाहें, उसके अक्षर सहित तीन अक्षर ले लेवें। जो स्वरूप उन तीनों अक्षरों का होगा, वही उस गण का स्वरूप होगा। जैसे — हम यगण का स्वरूप जानना चाहते हैं, तो हमें सूत्र में से 'य' सहित बाद के दो अक्षर अर्थात् 'यमाता' ले लेना चाहिए। यमाता का स्वरूप है आदि लघु (ISS)। बस यही यगण का स्वरूप होगा। इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए। 



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