श्री रामवृक्ष बेनीपुरी

श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक ग्राम में हुआ था। आपने हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से 'विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपमें प्रारंभ से ही देश प्रेम की भावना प्रबल होने से 1920 ई. में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। अतः आपका शिक्षा क्रम भंग हो गया। बेनीपुरी जी स्वतंत्रता के दीवाने थे। पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर और स्वयं उनका संपादन करके देशवासियों में देश प्रेम की भावना भड़काने के आरोप में आपको कई बार जेल भी जाना पड़ा। परंतु आप की स्वतंत्रता और सरस्वती की आराधना शिथिल नहीं हुई। आप जीवन भर साहित्य साधना में संलग्न रहे। सन 1968 ई. में आप इस संसार से विदा हो गए।

 रचनाएं -

बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएं निम्नानुसार हैं -
(अ) निबंध और रेखा चित्र गेहूं और गुलाब, माटी की मूरतें, लाल तारा आदि आपके निबंधों और रेखाचित्रों के संग्रह हैं।
(ब)  संस्मरण - जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर आदि।
(स)  नाटक - सीता की मां, आम्रपाली रामराज्य आदि।
(द) उपन्यास - पतितों के देश में।
(य)  कहानी -  चिंता के फूल।
(र)  जीवनी - कार्ल मार्क्स, जयप्रकाश नारायण, महाराणा प्रताप।
(ल)  यात्रा - वृत्त -  पैरों में पंख बांधकर, उड़ते चले।
(व)  आलोचना - विद्यापति पदावली, बिहारी - सतसई की सुबोध टीका।
(स)  पत्रकारिता - तरुण - भारती, कर्मवीर युवक, हिमालय, नई धारा,  बालक, किसान मित्र,  आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपने बड़ी कुशलतापूर्वक संपादन कार्य किया।

भाषा शैली - 

बेनीपुरी जी की भाषा सरल, सुबोध, सजीव, मुहावरेदार, अलंकारिक तथा लक्षणिक प्रयोगों से युक्त है। आपका शब्द - चयन चमत्कारिक है। भाव, प्रसंग और विषय के अनुरूप आप तत्सम, तद्भव,  देशज, उर्दू, फारसी आदि शब्दों का ऐसा सटीक प्रयोग करते हैं कि पाठक उन्हें 'शब्दों का जादूगर' कहने लगता है। संक्षेप में, बेनीपुरी जी भाषा के सम्राट हैं।
                    आपने विषयानुरूप वर्णनात्मक, भावात्मक, चित्रात्मक, प्रतीकात्मक आदि विविध शैलियों का अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। कहीं-कहीं आपकी रचनाओं में डायरी - शैली, संवाद - शैली, सूकि्त - शैली के भी दर्शन होते हैं। इस प्रकार लाक्षणिकता, प्रभावमयता चित्रात्मकता, भावात्मकता और गतिमयता आपकी शैली में सर्वत्र विद्यमान है। इस प्रकार बेनीपुरी जी एक कुशल शब्द - शिल्पी और भाषा के जादूगर के साथ व्यंजना प्रधान, भावपूर्ण, चित्रात्मक शैली के समर्थ लेखक हैं।

 साहित्य में स्थान

बेनीपुरीजी एक प्रतिभा संपन्न राष्ट्र भक्त साहित्यकार थे। उन्होंने अपनी रचना संपदा से हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अमूल्य योगदान दिया। आप हिंदी के मौलिक निबंधकार, समर्थ रेखा चित्रकार, अद्वितीय शब्द शिल्पी और आदर्श पत्रकार थे।
डॉ. राजेश्वर प्रसाद 'चतुर्वेदी' के अनुसार, "सरस्वती के इस महान साधक के जीवन के दो पक्ष थे -  एक साहित्य सेवा - और दूसरा राष्ट्र सेवा। आजीवन इन दोनों कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करता हुआ यह महान् तपस्वी हिंदी साहित्य - जगत में अमर हो गया।"
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