कहानी महत्वपूर्ण (प्रश्नोत्तर)

प्रश्न - कहानी किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए। 
  • उत्तर -  कहानी वह गद्य रचना है, जिसमें किसी घटना, चरित या मानवीय व्यवहार के किसी विशिष्ट पहलू को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।  'कहानी' जीवन के किसी मार्मिक तथ्य को नाटकीय प्रभाव के साथ व्यक्त करने वाली, अपने आप में पूर्ण एक कलात्मक गद्य - विधा है। प्रायः यह दिन प्रतिदिन की किसी घटना को आधार बनाकर लिखी जाती है। यह गद्य - विधा पाठकों को अपनी यथार्थपरकता और मनोवैज्ञानिकता के कारण प्रभावित करती है। 
प्रश्न - कहानी के तत्वों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - कहानी में प्रायः 6 तत्वों की प्रधानता होती है -  (1) कथानक, (2) पात्र एवं चरित्र चित्रण (3) कथोपकथन अथवा संवाद, (4) देश - काल और वातावरण, (5) भाषा - शैली एवं (6) उद्देश्य।
प्रश्न - हिन्दी की पहली कहानी और उसके लेखक का नाम लिखिए। 
  • उत्तर - हिन्दी की पहली कहानी किशोरीलाल गोस्वामी द्वारा रचित 'इन्दुमती' को माना जाता है। यह कहानी 1900 ई. में 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
प्रश्न - हिन्दी - कहानी के विकास का काल विभाजन किस प्रकार किया गया है? 
  • उत्तर - हिन्दी - कहानी के विकास का काल - विभाजन निम्न प्रकार किया गया है - 
  1. प्रारम्भिक युग - 1900 से 1910 तक 
  2. प्रसाद - युग - 1911 से 1919 तक 
  3. प्रेमचन्द युग - 1920 से 1935 तक 
  4. संधि युग - 1936 से 1949 तक 
  5. नवयुग - 1950 से अब तक 
प्रश्न - 'द्विवेदी युग' के किन्हीं दो प्रसिद्ध कहानीकारकों के नाम लिखिए।
  • उत्तर - 'द्विवेदी युग' के प्रसिद्ध कहानीकारों में किशोरी लाल गोस्वामी, चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी', विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक', एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आदि के नाम उल्लेखनीय हैंं। 
प्रश्न - हिन्दी - कहानी को प्रेमचन्दजी का क्या योगदान है?
  • उत्तर - प्रेमचन्द जी ने हिन्दी - कहानी को छायावादी भावुकता से मुक्त करके उसे यथार्थ के धरातल पर प्रतिष्ठित किया तथा मनोवैज्ञानिक चरित्र - चित्रण को भी महत्व प्रदान किया। 
प्रश्न - प्रेमचन्द जी की किन्ही पाँँच प्रसिद्ध कहानियों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - प्रेमचन्द जी की पाँँच कहानियाँँ है - (1) शतरंज के खिलाड़ी, (2) कफन, (3) ईदगाह, (4) पंच परमेश्वर, (5) नमक का दरोगा।
प्रश्न - प्रेमचन्द के समकालीन किन्हीं दो कहानीकारकों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - प्रेमचन्द के समकालीन दो कहानी कारक हैं - (1)  जयशंकर प्रसाद, (2) सुदर्शन।
प्रश्न - प्रेमचन्द के उत्तरकालीन दो कहानीकारकों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - प्रेमचन्द के उत्तरकालीन दो कहानीकारक हैंं - (1) जैनेंद्र कुमार, (2) यशपाल।
प्रश्न - द्विवेदी युग के किन्हीं दो प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध कहानीकार है - (1)  चन्द्रधर  शर्मा 'गुलेरी', (2) विश्वंभरनाथ  शर्मा 'कौशिक'।
प्रश्न - आधुनिक हिन्दी - कहानी के प्रारम्भिक युग के प्रमुख कहानीकारोंं के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - आधुनिक हिन्दी - कहानी के प्रारम्भिक युग के प्रमुख कहानीकार बंग महिला, किशोरीलाल गोस्वामी, रामचंद्र शुक्ल तथा महावीर प्रसाद द्विवेदी है।
प्रश्न - प्रसाद जी की कहानियों के मुख्य विषय क्या है? 
  • उत्तर - प्रसाद जी की कहानियों के मुख्य विषय प्रेम और सौंदर्य, देशप्रेम, भारतीय संस्कृति और इतिहास, नारी - मनोविज्ञान आदि हैंं।
प्रश्न - प्रसाद जी की दो प्रसिद्ध कहानियों के नाम लिखिए। उत्तर - प्रसाद जी की दो प्रसिद्ध कहानियों के नाम है - (1) पुरस्कार (2) ममता 
प्रश्न - प्रेमचन्द जी की कहानियों के विषय क्या हैंं?
  • उत्तर - प्रेमचन्द जी की कहानियों के विषय समाज के श्रमिक और किसान वर्ग की समस्याएँँ जन-जागरण, मानव- मनोविज्ञान, सामाजिक विषमताएँँ आदि हैं।
प्रश्न - आधुनिक युग (छायावादोत्तर युग) के प्रमुख कहानीकारों के नाम लिखिए। 
  • उत्तर - आधुनिक युग के कहानीकार हैं - (1) भीष्म साहनी (2) शिवानी (3) मालती जोशी आदि ।
प्रश्न - कहानी लेखक का कहानी में क्या उद्देश्य होता है?
  • उत्तर - कहानी एक ऐसी गद्य रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का मुख्य उद्देश्य होता है। 
प्रश्न - श्रेष्ठ कहानी की चार विशेषताएँँ लिखिए। 
  • उत्तर - 
  1.  कहानी की कथावस्तु सुलझी हुई होना चाहिए।
  2. कहानी की भाषा चुटीली होना चाहिए। 
  3. कहानी में देशकाल अथवा वातावरण का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। 
  4. कहानी के संवाद पात्रानुकूल तथा कथानक को गति देने वाले होना चाहिए।
प्रश्न - विषयों की दृष्टि से आधुनिक हिन्दी कहानी का वर्गीकरण कीजिए। 
  • उत्तर - विषयों की दृष्टि से आधुनिक हिन्दी - कहानी को सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, यथार्थवादी, प्रतीकात्मक, वैज्ञानिक, रहस्य - रोमांचकारी, व्यंग्यात्मक, मनोवैज्ञानिक आदि वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
प्रश्न - आधुनिक युग की महिला कथाकारों के नाम लिखिए।
  • उत्तर - आधुनिक युग की महिला कथाकार है - (1) उषा प्रियंवदा, (2) शिवानी, (3) मन्नू भंडारी (4) मालती जोशी आदि। 
प्रश्न - कहानी व आख्यायिका अंतर स्पष्ट कीजिए?
  • उत्तर - प्राचीन काल में देवी - देवता, भूत - प्रेत, राजाओं आदि के वृतांत, वर्णन के रूप में कहे या लिखे जाते थे। इसमें कथाकार प्रत्यक्ष रूप से स्वयं के माध्यम से ही अपनी अभिव्यक्त करते थे। इन्हें 'आख्यायिका' कहा जाता था। 'कहानी' इस 'आख्यायिका' से भिन्न है। इसमें चरित, पात्र और संवादों के द्वारा कहानीकार अपने कथ्य को कहता है। कहानी का यह रूप आज के यथार्थ से प्रभावित है।
प्रश्न - कहानी और नई कहानी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
  • उत्तर - कहानी अर्थात् प्राचीन कथा केवल मनोरंजन अथवा उपदेश की दृष्टि से लिखी जाती थी, किन्तु आधुनिक (नई) कहानी मानव व्यवहार, कुंठाओं और संवेदनाओं को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से लिखी जाती हैंं।
प्रश्न - आधुनिक हिन्दी - कहानी के प्रमुख विशेषताएँँ संक्षेप में लिखिए।
  • उत्तर - आधुनिक कहानी (नई कहानी) की विशेषताएँँ हैं - (1) कथावस्तु की लघुता, (2) चरित्र - चित्रण, (3) जीवन के खण्ड विशेष की प्रस्तुति, (4) निश्चित उद्देश्य।
प्रश्न - कहानी और उपन्यास में अंतर बताइए।
  • उत्तर - तात्विक दृष्टि से कहानी और उपन्यास में समानता होते हुए भी कई बातों में अंतर होता है। यह अंतर निम्नानुसार है -
  1.  उपन्यास में जीवन और जगत् का विस्तृत वर्णन रहता है, जबकि कहानी में जीवन और जगत्  के किसी एक पक्ष विशेष का संक्षिप्त वर्णन रहता है।
  2. उपन्यास का आकार वृहद् होता है, जबकि कहानी का लघु होता है। 
  3. उपन्यास में प्रभाव की तीव्रता कम रहती है, जबकि कहानी में प्रभाव की तीव्रता अधिक रहती है। 
  4. उपन्यास एक उपवन है, तो कहानी उस उपवन के फूलों का एक गुलदस्ता है। 
  5. उपन्यास के अनेक उद्देश्य हो सकते हैं, जबकि कहानी का कोई एक निश्चित उद्देश्य होता है। 
प्रश्न - कहानी की परिभाषा देते हुए उसके प्रमुख तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  • उत्तर - कहानी क्या है, इसका कोई सुनिश्चित उत्तर दिया जाना कठिन है, क्योंकि कहानी निरंतर विकासमान विधा है। उसे किसी आकार या किसी समय सीमा में बाँँधना कठिन है। अतः जो कथा मूलक गद्य - रचना जीवन के किसी एक अंश या प्रसंग को लेकर रखी जाती है, उसे कहानी कहते हैं। यह लघुकाय रचना होती है।
   कहानी के तत्व  - कहानी के छह तत्व माने गए हैं। ये कहानी के अनिवार्य तत्व हैंं। इनके सफल निर्वाह पर ही कहानी की सफलता निर्भर होती है। यह तत्व निम्नानुसार हैंं -
  1. कथावस्तु - वह मूल कथा, जिस पर कहानी की संपूर्ण रचना आधारित होती है, कथावस्तु कहलाती है। कहानी के शेष पाँँच अंग कथानक का आश्रय लेकर ही कहानी की रचना में सहायक होते हैं।  एक अच्छे कथानक के गुण माने गए हैं - (1) संक्षिप्तता, (2) सुसंगठन, (3) रोचकता, (4) प्रभावशीलता। कहानी का कलेवर छोटा होता है, अतः उसका कथानक भी संक्षिप्त होना चाहिए। उसकी घटनाएँँ सुनियोजित तथा सुगठित होना चाहिए। कथानक में रोचकता  होने पर ही उसे पढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। कथानक में शिथिलता नहीं होना चाहिए। उसमें क्रमबद्ध प्रवाह होना चाहिए। इन गुणों से युक्त कथानक की कहानी को सफल बनाने में सहायक होता है।
  2. पात्र तथा चरित्र-चित्रण - यह कहानी का दूसरा तत्व है। हर कहानी में एक या अनेक व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं। ये व्यक्ति ही कहानी के पात्र कहे जाते हैं। कुछ कहानियों में मनुष्येतर  प्राणियों को भी पात्र बनाया जाता है। इन पात्रों के गुण - अवगुण, विचार, व्यवहार आदि का प्रकाशन किया जाना, उनका चरित्र - चित्रण कहा जाता है। चरित्र - चित्रण के दो भेद माने गए हैं - प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। जब किसी पात्र के चरित्र की विशेषताएँँ स्वयं कहानीकार या कोई पात्र बताता है, तो वह प्रत्यक्ष चरित्र - चित्रण होता है और जब पात्र के व्यवहार, विचार या सम्भाषण से उसके चरित्र का अनुमान किया जाता है, तो उसे अप्रत्यक्ष चरित्र - चित्रण कहते हैं। अप्रत्यक्ष चरित्र - चित्रण ही श्रेष्ठ माना गया है। श्रेष्ठ कहानी में पात्रों की संख्या सीमित रहती है। उनके चरित्र को स्वाभाविक रीति से विकसित होने का अवसर दिया जाता है।  मानव - मनोविज्ञान को आधार बनाकर जो चरित्र विकसित किया जाता है, वही श्रेष्ठ माना जाता है। पात्र के चरित्र पहले से गढ़े - गढ़ाए प्रतीत नहीं होने चाहिए। बाहरी घटनाओं के साथ-साथ पात्र के अंतर्द्वन्द्व को भी व्यक्त किया जाना चाहिए
  3. कथोपकथन या संवाद - पात्रों द्वारा परस्पर किए जाने वाले वार्तालापों को 'संवाद' कहा जाता है। श्रेष्ठ संवादों में अनेक गुणों का होना आवश्यक माना गया है। उनको संक्षिप्त होना चाहिए। उनकी भाषा पात्र के अनुरूप होना चाहिए। उनमें नाटकीयता, कथानक को गति देने की क्षमता, पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने की सामथ्र्य तथा पात्रों के चरित्र का प्रकाशन होना चाहिए। लम्बे संवाद नीरसता उत्पन्न करते हैं तथा कथानक के प्रभाव को शिथिल बनाते हैं। संवादों में चुस्ती और नाटकीयता  से रोचकता उत्पन्न होती है। संवादों से पात्र के चरित का आभास हुआ करता है। एक सफल कहानी के संवादों में उक्त गुणों का होना आवश्यक है।
  4. देशकाल और वातावरण - कहानी जिस स्थान और समय को लेकर लिखी जाती है, उसे देशकाल कहते हैं। जिस स्थान को लेकर कहानी की रचना होती है, उस स्थान के सामाजिक, सांस्कृतिक, और भौगोलिक परिवेश को वातावरण कहा जाता है। श्रेष्ठ कहानी में उस स्थान विशेष और उस समय विशेष की भाषा, वेशभूषा, रीति - रिवाज तथा आचार - विचार का ध्यान रखा जाता है। पात्रों को उन्हीं के अनुकूल ढाला जाता है। देश काल और वातावरण की सृष्टि से लेखक पाठक को उसी स्थान और समय का व्यक्ति बना देता है। इससे कहानी के प्रभाव में भी वृद्धि होती है।
  5. भाषा - शैली - कहानी की भाषा और उसे प्रस्तुत करने का ढंग कहानी की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होता है। भाषा ही पाठक और कहानीकार के बीच भावों, विचारों, संदेशों एवं संवेदनाओ के तद्वत सम्प्रेषण का माध्यम होता है। भाषा को पात्रानुरूप,  देशकालानुकूल और पाठकों की पहुँँच में होना चाहिए।।    शैली का अर्थ है - कहानी को प्रस्तुत करने का विशेष ढंग। हर  कहानीकार की एक निजी शैली होती है। वह पात्र, स्थिति और आवश्यकतानुसार विभिन्न शैलियों का प्रयोग करता है। वर्णनात्मक, विवरणात्मक, भावात्मक, संवादमयी, संस्मरणात्मक आदि अनेक शैलियों का प्रयोग कहानियों में किया जाता है। परिस्थिति के अनुसार सर्वोत्तम शैली के प्रयोग से ही कहानी सफल और श्रेष्ठ बनती है।
  6. उद्देश्य - कहानी का छठा तत्व है। हर रचना किसी न किसी उद्देश्य को सामने रखकर लिखी जाती है। कहानी भी अपने साथ कोई न कोई उद्देश्य लेकर चलती है। यह उद्देश्य मनोरंजन, शिक्षा, सुधार, प्रचार, समस्या - विशेष का हल, व्यंग्य या कोई महान संदेश हो सकता है। उद्देश्य को अपनी ओर से व्यक्ति या घोषित करना कहानी की कलात्मकता को क्षति पहुँँचाता है, अतः श्रेष्ठ कहानियों में उद्देश्य सदैव अप्रत्यक्ष या व्यंग्य रूप में निहित रहता है। 
उपरोक्त छह तत्वों के अतिरिक्त कुछ अन्य बातें भी कहानी की सफलता में योगदान करती हैं। कहानी का शीर्षक, कहानी का प्रारंभ और कहानी का अंत रोचक तथा मार्मिक होना चाहिए। कुछ शिल्प संबंधी या कलात्मक विशेषताएँँ भी प्रयोग में लाई जा रही हैं, जैसे - पूर्वदीप्ति (फ्लैशबैक) द्वारा कहानी के अंत या मध्य को आरम्भ में लाकर कहानी को प्रस्तुत करना। 'उसने कहा था' तथा 'कर्मनाशा की हार' नामक कहानी में इस कौशल का भी प्रयोग किया गया है। ये कहानी के मुख्य तत्व हैं, जिनको  आधार बनाकर किसी कहानी की विशेषताएँँ तथा सफलता या असफलता सुनिश्चित होती है। कहानी की समीक्षा के भी ये ही मानदण्ड होते हैं।
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