· छन्द के प्रकार बताइए।
छन्द के कुल तीन प्रकार है — (१) मात्रिक छन्द, (२) वर्णिक छन्द, (३) मुक्तक छन्द ।
- मात्रिक छन्द — मात्रा की गणना पर आधारित छन्द 'मात्रिक छन्द' कहलाते हैं। इनमें वर्णो की संख्या भिन्न हो सकती है, किन्तु निहित मात्राएॅ नियमानुसार होनी चाहिए।
- वर्णिक छन्द — वर्णो की गणना पर आधारित छन्द 'वर्णिक छंद' कहलाते है।
- मुक्तक छन्द — मात्रा और वर्ण की गणना से मुक्तक छन्द को 'मुक्तक छन्द' कहते हैं।
· गीतिका छन्द के लक्षण बताते हुए उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
गीतिका छन्द — यह एक मात्रिक सम छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 14 तथा 12 की यति पर 26 मात्राएॅ होती है। अन्त में लघु—गुरू (IS) होता है।
उदाहरणार्थ —
- साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे।
सभ्यता की सीढ़ियो पे, सूरमा चढ़ने लगे।।
वेद मंत्रों को विवकी, प्रेम से पढ़ने लगे।
वंचकों की छातियों में, शूल से गढ़ने लगे।
- हे प्रभो! आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र
सारे
दुर्गणों
को,
दूर
हमसे
कीजिए।।
लीजिए
हमको
शरण
में,
हम
सदाचारी
बनें।
ब्रम्हाचारी,
धर्मरक्षक,
वीर
व्रतधारी
बनें।।
· हरिगीतिका छन्द की परिभाषा और उदाहरण दीजिए।
हरिगीतिका छन्द — यह एक सम मात्रिक छंद है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 तथा 12 के विराम से 28 मात्राएॅ होती है। अन्त में लघु—गुरू (IS) होता है। उदाहरणार्थ —
- संसार की समरस्थली में, वीरता धारण करो।
चलते हुए निज इष्ट पाि पर, संकटों से मत डरो।
जीते हुए भी मृतक सम रह, कर न केवल दिन भरों।
वर वीर बनकर आप अपनी, विध्न बाधाएॅ हरो।।
- मुख से न होकर चित्त से, देशानुरागी हों सदा।
हैं सब स्वदेशी बंधु उनके, दु:खभागी हों सदा।।
· रोला छन्द का लक्षण बताते हुए उदाहरण दीजिए।
रोला छन्द — इस छन्द के प्रत्येक चरण में 11 तथा 13 मात्राओं की यति पर 24 मात्राएॅ होती है। अन्त में दो गुरू होते है। उदाहरण —
- हे देवी! यह नियम, सृष्टि में सदा अटल है,
रह सकता है वही सुरक्षित जिसमें बल है।
निर्बल का है नहींं, जगत् में कहीं ठिकाना,
रक्षा साधन उसे, प्राप्त हों चाहे नाना।।
- नीलाम्बर परिधान, हरित घट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युत—मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियॉ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मन्डन है।
बन्दीजन खग—वृन्द, शेष प्राण सिंहासन है।
· उल्लाला छन्द की परिभाषा दीजिए और उदाहरण लिखिए।
उल्लाला छन्द — इस छन्द के पहले तथा तीसरे चरण में 15 — 15 और दूसरे तथा चौथे चरण में 13 — 13 मात्राएॅ होती है। इस छन्द में कुल 28 मात्राएॅ होती है। उदाहरण —
- उस मातृभूमि की गोद में, जब पूरे सन जाएॅगें।
होकर भव—बंधन—मुक्त हम, आत्मरूप बन जाएॅगं।
- हे शरणदायिनी देवि! तू करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि! संतान हम, तू जननी, तू प्राण है।।
- करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।
· कुण्डलिया छन्द किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
कुण्डलिया छन्द — एक दोहा व एक रोला के मिलने से कुण्डलिया छन्द बनता है। इसमें छह चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएॅ होती हैं। इसका प्रारम्भ व अन्त एक शब्द से होता है। दोहा के प्रथम व तृतीय चरण में 13 — 13 और द्वितीय व चतुर्थ चरण में 11 — 11 मात्राएॅ होती है। रोला के प्रथम व तृतीय चरण में 11 — 11 और द्वितीय व चतुर्थ चरण में 13 — 13 मात्राएॅ होती है।
बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हॅसाय।।
जग में होत हॅसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सनमान, राग रंग मनहिं न भावै।।
कह गिरधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे।।