पाठ — 5 प्रकृति — चित्रण ( पद्य — भारती ) ok

 पाठ — 5 प्रकृति — चित्रण पद्य — भारती 
ऋतु — वर्णन (पद्माकर)

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या 

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
कयारिन में कलित कलीन किलकंत हैं।
कहैं पद्माकर परागन में पीन में,
पालन में पिक में पलासन पगंत हैं।
द्वार में दिसान में दुनी में देस — देसन में,
देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है।
वी​थिन में ब्रज में नवेलिन में बे​लनि में,
बगन में बागन में बगर्यो बसंत है।


संदर्भ — प्रस्तुत छंद पद्माकर द्वारा रचित 'ऋतुवर्णन' से अवतरित किया गया है।
प्रसंग — इसमें वसंत ऋतु के आगमन का वर्णन है।
व्याख्या — वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि यमुना नदी के तट पर कुंजन में, क्यारियों में, फूलों के पराग में, कोयल की मदमस्त पिक में, द्वार, दिशा — विदेश में, दीपों में, ब्रज की गलियों में, नववधुओं के उमंग में, सभी जगह वसंत फैला है, अर्थात् सभी जगह वसंत का आगमन हो चुका है।
विशेष — अनुप्रास अलंकार है।

और भॉति कुंजन में गुॅजरत भीरे भौंर
और डौर झीरन पै बोरन के वै गए।
कहै पद्माकर सु औरे भॉति गलियान,
छलिया, छबीले छैल और छ्वै — छ्वै गए।
और भॉति बिहग समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
और रस औरे रीति औरे राग औरे रंग,
और तन और मन और बन है गए।।

संदर्भ — प्रस्तुत छंद पद्माकर द्वारा रचित 'ऋतुवर्णन' से अवतरित किया गया है।  

प्रसंग — बसंत के प्रभाव का वर्णन है। 

व्याख्या — बसंत के प्रभावस्वरूप भौरों की गुंजों में, कुंजन में नया राग उत्तपन्न हो गया है। पद्माकर कवि कहते हैं कि ब्रज की गलियों में घूमने वाले छलिया, छैल — छबीलों की चाल — ढाल बदल चुकी है। पक्षियों के कलरव में बसंत का रंग समा गया है। ऋतुराज बसंत के आगमन से दिन — दोगुने हो गए है। तन — मन, राग — रंग, रीति — रिवाज सभी पर वसंत छा गया है। 

चंचला चलाकै चहूॅ ओरन तें चाह भरी, 
चरजि गई ती फेरि चरजन लागी री। 
कहै पद्माकर लवंगन की लोनी लता, 
लरजि गई ती फेरि लरजन लागी री। 
कैसे धरौं धीर वीर त्रिविधि समीरै तन, 
तरजि गई ती फेरि तरजन लागी री। 
घुमड़ि — घुमड़ि घटा घन की घनेरो अवै, 
गरजि गई तो फेरि गरजन लागी री।।

संदर्भ — प्रस्तुत छंद पद्माकर द्वारा रचित 'ऋतुवर्णन' से अवतरित किया गया है।   

प्रसंग — वर्षा ऋतु के प्रभाव का वर्णन है। 

व्याख्या — पद्माकर कवि कहते हैं कि बादलों के मध्य बिजली चमक रही है, जिसने चारों ओर उजाला बिखेर दिया है। सुन्दर लताएॅ वसंत के प्रभाव से लरज गई है। हे सखि! मेरे वन — मन को त्रिविधि समीर छू रहा है, फिर बताओं, मैं धैर्य केसे रखूॅ? मेरे मन पर नियंत्रण कैसे रखूॅ? बादलों की घटाएॅ उमड़ — घुमड़ रही हैं, गरज — बरस रही हैं। वर्षा ऋतु के प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहा है। 

तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै, 
वृंदावन वीथिन बहार बंसीबट पै।
कहै पद्माकर अखंड रासमंडल पै,
मंडित उमंड महा कालिंदी के तट पै।
छिति पर छान पर छाजत छतान पर, 
​ललित लतान पर लाड़िली की लट पै।
छाई भली छाई यह सरद् जुन्हाई जिहि,
पाई छवि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै।।

संदर्भ — प्रस्तुत छंद पद्माकर द्वारा रचित 'ऋतुवर्णन' से अवतरित किया गया है।    

प्रसंग — शरद् ऋतु का वर्णन है। 

व्याख्या — कवि पद्माकरजी कहते है कि शरद् ऋतु का प्रभाव ताल, तालाब, वृंदावन की गलियों में, अखंड रासमंडल पर, यमुना नदी के तट पर, भूमि, क्षितिज पर, सुंदर लताओं पर, नायिका की लटाओं पर, सभी पर शरद् ऋतु का प्रभाव दिखाई पड़ता है। शरद् ऋतु के प्रभाव से कृष्ण का मुकुट अत्यधिक शोभायमान हो रहा है।  

बादल को घिरते देखा है (नागार्जुन)

पद्यांशो की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या 

अमल धवल गिरि के शिखरों पर 
बादल को घिरते देखा है। 
छोटे — छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है। 
तुंग हिमालय के कंधो पर 
छोटी बड़ी कई झीलें हैं।
उनके श्यामल नील सलिल में 
समतल देशों में आ — आकर 
पावस की ऊमस से आकुल
तित्कत — मधुर बिस तंतु खोजते
हंसो को तिरते देखा हे।
बादल को घिरते देखा है। 

संदर्भ — प्रस्तुत काव्यांश 'बादल को घिरते देखा है' कविता से लिया गया है। इसके कवि नागार्जुन है। 

प्रसंग — हिमालय पर्वत पर घिरे हुए बादलों का वर्णन किया गया है। 

व्याख्या — हिमालय पर्वत के शिखरों पर बादलों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि हिमालय पर्वत के शिखरों पर बादल को घिरते ​देखा है। छोटे — छोटे मोती जैसे शीतल ओंसकणों को मानसरोवर के स्वर्ण के समान कमलों पर गिरते हुए देखा है। बादलों को घिरते देखा है। हिमालय में कई छोटी — बड़ी झीलें है। उनके नीले गहरे ज में अनेक देशों से आए हुए गर्मी से व्याकुल हंसों को वहॉ तैरते हुए देखा है, जो छोटे — छोटे कीड़ों को खोजकर अपना पेंट भर रहे है।  

ऋतु बसंत का सुप्रभात था
मंद — मंद था अनिल बह रहा, 
बालारूण की मृदु किरणें थीं
अगल बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक दूसरे से विरहित हो 
अलग — अलग रहकर ही जिनको 
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर अभिशापित
बेवस उन चकवा — चकई का 
बंद हुआ क्रंदन फिर उनमें 
उस महान सरवर के तीरे 
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है। 

संदर्भ — प्रस्तुत काव्यांश 'बादल को घिरते देखा है' कविता से लिया गया है। इसके कवि नागार्जुन है।  

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने वसंत ऋतु के प्रात: काल का वर्णन किया है।

व्याख्या — वसंत ऋतु का समय था। प्रात: काल मंद मंद ठंडी हवा बह रही थी। उदित हुए सूरज की स्वर्णिम किरणें शिखरों को स्पर्श कर रही थी। चकवा — चकवी पक्षी रात्रि होने पर एक — दूसरे से अलग होने के लिए अभिशापित है। उन विरही चकवा — चकवी को सुबह होने पर झीलों में बिछी नीली हरी शैवाल पर प्रणय क्रंदन करते हुए देखा हे। बादल को घिरते देखा है। 

दुर्गम बर्फानी घाटी में 
शत सहस्त्र फुट ऊॅचाई पर
व्योम प्रवाही गंगाजल का,
ढॅूढा बहुत परन्तु लगा क्या 
अलख — नाभि से उठने वाले 
निज के ही उन्मादक परिमल 
के पीछे धावित हो होकर 
तरल तरूण कस्तूरी मृग को 
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
कहॉ गया धनपति कुबेर वह 
कहॉ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के 
मेघदूत का पता कहीं पर 
कौन बताए वह छायामय 
वरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि कल्पित था।
मैंने तो भीषण जाड़ो में
नभचुंबी कैलाश शीर्ष पर 
महादेव को झंझानिल से 
गरज — गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है। 

संदर्भ — प्रस्तुत काव्यांश 'बादल को घिरते देखा है' कविता से लिया गया है। इसके कवि नागार्जुन है।   

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने हिमालय के बदलों का वर्णन किया हे। 

व्याख्या — हिमालय पर्वत के शिखरों पर विचरण करने वाले कस्तूरी गृग को उसकी ही नाभि से निकलने वाली गंध से वशीभूत होकर, उसे अन्यत्र कहीं ढूॅढते हुए और खुद पर चिढ़ते हुए देखा है। 

         कवि ने कालिदास के काव्य की चर्चा करते हुए कहा हे कि कहॉ है वह धनपति कुबेर और कहॉ है उसकी वह अलका? न ही यहॉ पर गंगाजल का कहीं पता है। कालिदास का मेघदूत भी नजर नहीं आता है। हो सकता है कहीं वह बरस पड़ा होगा। कवि कहता है कि जाने दो, वह कवि कल्पनाओं में विचरण करने वाला था। मैंने तो यहॉ भीषण जाड़ों में कैलाश शीर्ष पर महामेघ को आपस में भिड़ते देख है। बादल को घिरते देखा है। 

पाठ — 5 प्राकृति चित्रण प्रश्न — उत्तर  

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