गद्य — खण्ड पाठ — 1 मैं और मेरा देश (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर')

 गद्य — खण्ड 
पाठ — 1 
मैं और मेरा देश (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर')

''मैं अपने देश का नागरिक हॅू, और मानता हॅू कि अपना देश है। जैसा मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हरेक छोटी — छोटी बात पर ध्यान देता हॅू। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हॅू, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊॅ — यह मेरा अधिकार है। बात यह है कि मैं और मेरा देश दो अलग चीज तो हैं ही नहीं।''

सन्दर्भ — उपर्युक्त गद्यांश श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' द्वारा लिखित 'मैं और मेरा देश' शीर्षक निबन्ध से उदधृत किया गया है। 
प्रसंग — उक्त गद्यांश में निबन्धकार ने व्यक्ति और देश को एक — दूसरे से सम्बद्ध बताते हुए कहा है — 
व्याख्या — व्यक्ति को समझना चाहिए कि मैं अपने देश का नागरिक हूॅ और देश मेरा है। जिस प्रकार मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए प्रत्येक छोटी — छोटी बात पर ध्यान देता हॅू, उसी प्रकार मैं अपने देश के लाभ सम्मान के लिए भी छोटी — छोटी बातों पर ध्यान दूॅ। व्यक्ति को यह अच्छी तरह से विचार करना चाहिए कि जिस प्रकार मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हॅू — अपने जीवन का उत्थान करता हॅू — अपने जीवन का विकास करता हॅू, उसी प्रकार मेरा देश भी सम्मान पाए और उन्नति करे। वस्तुत: मैं और मेरा देश दो अलग चीज नहीं है। व्यक्ति और देश परस्पर जुड़े हुए है। व्यक्ति को देश या राष्ट्र है। परन्तु यह उससे भी बड़ा सच है कि देश या राष्ट्र है, तो व्यक्ति का अस्तित्व हे। अत: व्यक्ति को निजी स्वार्थो पर विशेष ध्यान न देकर देश या राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि मानना चाहिए। 
विशेष — सरल, सुबोध, विवेचनात्मक शैली का प्रयोग। 

महत्व किसी कार्य की विशालता से नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है, बड़े से बड़ा कार्य हीन है। यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना हे। 

सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश ''मैं और मेरा देश'' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी हैं। 

प्रसंग — प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि कार्य से अधिक महत्व कार्य के मूल में होने वाली भावना का होना चाहिए। 
व्याख्या — जीवन अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर लेखक कहते हैं कि महत्व कार्य की महानता या लघुता का नहीं होता है। छोटा सा कार्य भी महानता का परिचायक हो सकता है और बहुत बड़ा कार्य हीनता का कारण बन सकता है। महत्व किए गए कार्य के मूल में होने वाली भावना का होता हे। स्पष्ट है किए गए कार्य की अपेक्षा कार्य की भावना अधिक महत्वपूर्ण होती है। 
विशेष — सरल, सुबोध, साहित्यिक बड़ी बोली, विवेचनात्मक शैली का प्रयोग।

मैंने जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव से सीखा है, वह यही कि महत्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है। 

सन्दर्भ —  प्रस्तुत गद्यांश ''मैं और मेरा देश'' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी हैं। 
प्रसंग — लेखक के अनुसार अच्छी भावना से किया गया कार्य ही अच्छा और बड़ा होता है। 
व्याख्या — लेखक प्रभाकर ने अपने जीवन में अध्ययन और अनुभव से यह सीखा कि जीवन में कार्य के छोटे — बड़े होने का महत्व उस कार्य की भावना से होता है। अच्छी भावना से किया गया कार्य महान होता है और बुरी भावना से किया गया कार्य तुच्छ होता है। 
विशेष — (1) लेखक ने कार्य की भावना को महत्वपूर्ण माना है। (2) भाषा सहज एवं सरल है।
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