रूपरेखा -
- प्रस्तावना,
- तैयारियाॅ,
- दीपावली कैसे मनाई जाती है?,
- दीपावली का महत्व,
- उपसंहार।
प्रस्तावना - भारतीय त्यौहार समाज के लिए सामूहिक उत्सव है। इन त्यौहारों पर जनसामान्य अपनी आन्तरिक और वाह्य भावनाओं को अपनी किसी भी कार्य - शैली के माध्यम से प्रकट करता है। इसका कारण है कि मनुष्य इन उत्सवों के मनाने के लिए विविध आयोजनों की रूपरेखा तैयार करता है।
भारत में वर्ष के प्रत्येक महीने त्यौहार मनाये जाते दिखते है। अतः भारत में वर्ष के प्रत्येक दिन उत्सव व त्यौहार आदि का आयोजन होता ही रहता हे। इस आधार पर भारत को त्यौहारों और पर्वो का देश कहा जाता है। दीपावली हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार है।
तैयारियाॅ - दीपावली आने से 10 - 15 दिन पहले से ही इसकी तैयारी करना प्रारम्भ कर दी जाती है। घरों और दुकानों की सफाई की जाती है। चारों ओर चाहे शहर हो या गाॅव अथवा छोटा शहर, सभी सजे हुए इस तरह प्रतीत होते है, जैसे मानो वे लक्ष्मीजी के आने की प्रतीक्षा कर रहे हों। यह दीपावली त्यौहार शरद ऋतु के प्रारम्भ में आता है। उस समय न अधिक गर्मी होती है, और न अधिक ठण्डे। मौसम सुहावना होता है। इस समय धीरे - धीरे शीतल और सुगन्ध युक्त हवा बहती रहती है। प्रकृति खुशनुमा होती है। पशु - पक्षी, लता - वृक्ष, स्त्री - पुरूष सभी आनन्दमय होते है। प्रकृति भी इस त्यौहार को मनाने के लिए तत्पर प्रतीत होती है।
दीपावली कैसे मनाई जाती है? - दीपावली का पर्व हिन्दू कार्तिक महीने की अमावस्या को पड़ता है। वैसे यह त्यौहार कार्तिक महीने की कृष्णपक्षीय तेरस (धन तेरस) से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई - दौज) तक लगातार पाॅच दिन तक बड़ी धूमधाम और सज - धज के साथ मनाया जाता है। धन तेरस का दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्मदिन माना जाता है। अतः वैद्य (डाॅक्टर), इस दिन उनकी पूजा - अर्चना करते हैं। लोग इस दिन बर्तनों की खरीददारी करना शुभ मानते है। अतः इस दिन बाजारों में बड़ी - बड़ी दुकानें बर्तनों से भरी हुई और सजावट की हुई आकर्षक लगती है। इसके दूसरे दिन चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) होती है। इसे छोटी दीपावली कहते है। लोग प्रातः तेल - मालिश कर नहाते हैं और समझा जात है िकइस तरह के स्नान करने से उनके शारीरिक रोग व पाप दूर हो जाते हे। सायंकाल घर की प्रमुख नाली के पास दीपक जलाया जाता है।
इसके बाद बड़ी दीपावल आती है। अमावस्या का दिन दीपावली का मुख्य दिन होता है। दिन में पकवान बनते हैं। बच्चे नये स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। सर्वत्र खुशी का वातावरण होता है। रात्रि में लक्ष्मी जी का पूजन होता है। घर, दुकान, कारखानों पर विद्वान पण्डित से पूजा कराते है। उन्हें विविध उपकार व मिठाइयाॅ दी जाती है। व्यापारी लोग अपने खाते और बहीखाते बदलते है। पूजा में प्रमुख रूप से ताजे फूल, रोली, चन्दन, धूपबत्ती व खली रखी जाती है। लोग व बालक पटाखे चलाते हैं। दीपक जलाये जाते है, चारों ओर उजाला होता है।
दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा (पड़वा) होती है। इस दिन गोवर्धन पूजा का उतसव हुआ करता है। दूध, खील और पकवानों से गोवर्धन की पूजा की जाती है। गोबर का गोवर्धन बनाया जाता है। इस दिन घर के सभी सदस्य एकत्र होकर पूजा करते हैं। पाॅचवे दिन भैया दौज होती है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त जी पूजन किया जाता है। इसी दिन बहने अपने भाइयों का टीका करती है। उन्हें मिठाई, वस्त्र आदि देती है और उनके स्वस्थ रहने तथा दीर्घायु होने की कामना करती है।
दीपावली का महत्व - दीपावली हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। इस पर्व पर सभी प्रतिष्ठानों आदि की मरम्मत आदि करा दी जाती है। सफाई की जाती है। रंगाई और पुताई से दुकान और घर सुन्दर लगते है। लोगों में विशेष उत्साह होता है। क्योकि उनकी खरीफ की फसल पक जाती है और रबी की फसल बोये जाने की तैयारी की जाती है। लोग परस्पर मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं। सभी में सद्भाव और सहानुभूति की जागृति होती है।
उपसंहार - इस उत्सव पर लोग जुआ आदि खेलते है जो कि गलत है। इन आदतों से मुक्ति पाने के लिए सभी समाज के लोगों को मिलकर प्रसास करना चाहिए।
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