गद्य
— भारती
पाठ — 5
पहली
चूक (श्रीलाल शुक्ल)
'' मेरे चाचा ने मुझे समझाया कि खेती का काम है तो बड़ा उत्तम, पर फारसी पढ़कर जिस प्रकार तेल नहीं बेचा जा सकता, वैसे ही अंग्रेजी पढ़कर खेत नहीं जोता जा सकता। इस पर मैंने उन्हें बताया कि यह सब कुदरत का खेल है, क्योकि फारस में तेल बेचने वाले संस्कृत नहीं बोलते, खेत जोतते हैं।
सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश 'पहली चूक' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीलाल शुक्ल है।
प्रसंग — जब लेखक को पढ़ने के बाद भी नौकरी नहीं मिली, तो वह खेती के कार्य को श्रेष्ठ समझकर अपने चाचा के पास गॉव गया और इस सम्बन्ध में सलाह — मशविरा करने लगा।
व्याख्या — जब चाचा को मैंने गॉव आने का कारण खेती करना बतलाया, तो उन्होंने मुझे समझाया कि यह तो सही है। कि खेती का काम सबसे अच्छा है। परन्तु किसे यह कार्य करना चाहिए, यह तुमको मालूम नहीं है। इसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता, जिस प्रकार फारसी पढ़कर तेल नहीं बेचा जा सकता। कहने का अभिप्राय यह है कि जिसने जो काम सीखा है, वह उसी काम को कर सकता है। यह बात चाचा की मुझे जॅची नहीं। मैंने इसका विरोध करते हुए उन्हें समझाया कि यह सब प्रकृति का खेल है, क्योकि फारस में फारसी पढ़ने वाले अगर तेल नहीं बेचेगे तो संस्कृत भी नहीं बोलेगे, अर्थात् वे भी तेल बेचने के स्थान पर खेती ही करेगे।
विशेष — कार्य की
श्रेष्ठता के लिए
बड़ों से सलाह
मशविरा करना।
सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश 'पहली चूक' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीलाल शुक्ल है।
प्रसंग — लेखक ने गॉव की विशेषता बताते हुए कहा कि गाय के गोबर का स्थान पंचगव्य में है, तब वे आश्चर्य में पड़कर बोलने लगे —
व्याख्या — मैंने शरीर को पंचभूत तथा गाय के गोबर को पंचगव्य कहकर लोगों को बताया। गोबर की पवित्रता की बात सुनकर चाचा अचम्भे में पड़ गये। जहॉ मैं बैठकर ये बातें कर रहा था, वहॉ पास में बैठे लोगों ने प्रशंसा में धन्य — धन्य का नारा नगाया। आगे मैंने चाचा से कहा कि यह कहना अब सही नही है कि खेती करना तो मूर्खो या गॅवारों का व्यवसाय है। इस काम की तो महान् लोगों ने भी प्रशंसा की है।
विशेष — गॉव की
विशेषता का सही
चित्रण।
''मैंने रामचरन के
कन्धे पर हाथ
रखकर सार्वभौमिक मित्रता
के भाव से
कहा, ''तो भाई
रामचरन, मुझे बताओं
यह बाजरा कौन
है? कहॉ रहता
है? यह खड़ा
कहॉ है? इसे
क्यों खड़ा किया
गया है?'' मेरी
बात सुनते ही
रामचरन जोर से
हॅसने लगा। आसपास
काम करते हुए
किसानों को पुकारकर
उसने कहा, ''यह
देखो, ये भैया
तो बाजरा को
आदमी समझ रहे
हैं।''
सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश 'पहली चूक' निबन्ध से अवतरित हे। इसके लेखक श्रीलाल शुक्ल हैं।
प्रसंग — लेखक ने यहॉ पर वास्तविक व्यंग्य का परिचय दिया है। शहर में रहने वाले अधिकांश लोगों को फसल के बारे में जानकारी नहीं होती हैै। यहॉ शहरी युवक की बातों का वर्णन है।
व्याख्या — लेखक ने रामचरन किसान के कन्धे पर इस प्रकार मित्रवत् हाथ रखा, मानो दोनों ही परिचित एक श्रेणी के किसान हों, और कहा भाई रामचरन जरा मुझे बताओं तो यह बाजरा कौन है? यह रहता कहॉ है? यह कहॉ खड़ा हुआ है? इसको खड़ा किसने किया है? मैंने सभी प्रश्न एक ही सॉस में कह डाले। मेरी बातों को सुनकर रामचरन बड़ी जोर से खिलखिलाकर हॅसा। नजदीक के खेतों में उस समय किसान अपने — अपने कामों में लगे हुए थे। उसने जोर से आवाज लगाई — सुनों भाई सुनो अरे देखो तो ये भैया क्या कह रहे है। एक नई बात सुनों — ये बाजरे के पेड़ को आदमी समझ रहे हैं। अर्थात् एक अचम्भे भरी बात आज मैंने सुनी है।
विशेष — विवेचनात्मक शैली
का प्रयोग।
''मैं जितना
ही खेती की
समस्याओं को समझता
गया, उतना ही
शहर जाने की
आवश्यकता बढ़ती गई। इसलिए
एक दिन मैंने
कृषिशास्त्र की सब
किताबें बैग में
बन्द की और
अपनी कार्डराय की
पतलून और रंग
— बिरंगी छापेदार बुशशर्ट पहनी,
फैल्ट कैप लगाई
और चाचा से
कहा — ''देखिए, यह खेती
का काम ऐसा
है कि बिना
शहर गए इसे
साधना कठिन है।''
सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश 'पहली चूक' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीलाल शुक्ल है।
प्रसंग — इस गद्याांश में लेखक ने खेती के लिए शहर से सम्पर्क की बात कही है।
व्याख्या — मैं जब खेती के कार्य में जुट गया तो आये दिन नई — नई समस्याएॅ आने लगी। प्रत्येक काम के लिए शहर जाना जरूरी हो गया था। वही खेती के कार्य में आने वाली समस्याओं का समाधान था। मैं परेशान हो गया और अब अच्छी तरह समझ चुका था कि जब शहर से ही समस्याओं का समाधान होना है, तो शहर ही क्यों न चला जाये। फिर क्या था, तुरन्त मैंने कृषिशास्त्र की सभी पुस्तकों को समेटा और एक बैग में रख लिया। शर्ट और कार्डराय की पतलून को पहना और सिर पर फैल्ट कैप लगा ली। तैयार होकर चाचा के पास पहॅुचा और उनसे कहा — चाचा, देखिए यह खेती का काम ऐसे नहीं होने का। इसके लिए तो शहर जाना ही पडेगा। बिना शहर जाये खेती करना मुश्किल है।
विशेष — सरल, सुबोध,
साहित्यिक शैली का
प्रयोग।
''दूसरे दिन से
ही मुझे इस
बात की चिन्ता
हुई कि ऐसी
चूक मुझसे कहीं
दुबारा न हो
जाए। इसलिए कृषि
शास्त्र की मोटी
— मोटी किताबें गंगवाकर मैंने
उनका अध्ययन आरम्भ
कर दिया। गॉव
से मैं हताश
हो गया था।
वहॉ वह था
ही नहीं जो
मैंने रूपहले पर्दे
पर देखा था।
फिर भी मैं
अध्ययन करता रहा।
अध्ययन करते — करते मैं
इस नतीजे पर
पहुॅचा कि आदर्श
खेती गॉव में
हो ही नहीं
सकती, वह शहर
में ही होती
है। यह सब
इस प्रकार से
हुआ।''
संदर्भ — प्रस्तुत गद्यांश 'पहली चूक' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीलाल शुक्ल है।
प्रसंग — लेखक ने इस गद्यांश में आदर्श खेती के बारे में विचार व्यक्त किए हैं जिसमें सुख — सुविधापूर्ण शहरी वातावरण में रहकर ग्रामीण समस्याओं को सुलझाने की असंगति को स्पष्ट किया है।
व्याख्या — लेखक ने आदर्श खेती के बारे में वर्णन किया है कि मुझे इस बात की चिन्ता हुई कि मुझसे भाषायी चूक से दुबारा गलती न हो। इसलिए उन्होने भूल से बचने के लिए कृषि शास्त्र की मोटी — मोटी किताबें मंगलवार उनका अध्ययन किया। गॉव से वे परेशान हो चुके थे, वहॉ वह था ही नहीं जो उन्होंने रूपहले पर्दे पर देखा था। कृषिशास्त्र की किताबों के अध्ययन से इस नतीजे पर पहुॅचे की आदर्श खेती गॉव में नही हो सकती, वह तो शहर में ही हो सकती है।
विशेष — भाषा — शैली का सरल चित्रण।
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