चॉदनी चमकती है गंगा बहती जाती है (त्रिलोचन)
पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या —
चल रही हवाधीरे — धीरेसीरी — सीरीउड़ रहे गगन मेंझीने — झीनेकजरारेचंचल बादल!छिपते दिपतेजब — तबतारेउज्जवल, झलमलचॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है।
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश — 'चॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है' नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि 'त्रिलोचन' है।
प्रसंग — कवि ने गंगातट की चॉदनी रात का वर्णन किया है।
व्याख्या — कवि ने गंगातट की चॉदनी रात का वर्णन करते हुए कहा है कि ठंडी हवा धीरे — धीरे चल रही है। आकाश में काले — काले चंचल बादल यहॉ वहॉ दिखाई दे रहे है। झिलमिल, उज्जवल तारे छिपते, दिखते दिखाई दे रहे है। चॉदनी चमक रही है, गंगा बहती जाती है।
ऋतु शरद औरनवमी तिथि हैहै कितनी, कितनी मधुर रातमन में बस जाती शीतलताहै अभी नहीं जाड़ा कोईबस जरा जरा रोएॅ कॉपेतन — मन में भर आया उछाहहॉ, दिन भी आज अजीव रहारिमझिम — रिमझिम पानी बरसाफिर खुला गगनहो गयी धूपदिन भर ऐसा ही रहा तारकपसीले, ऊदे, लाल औरपीले, मटमैले — दल के दलआए बादलअब रातन उतना रंग रहाकाला, हल्का या गहराया धुएॅ — साकुछ उजला — उजलाकिसके अतृप्त दृग देखेंगेचॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है।
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश — 'चॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है' नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि 'त्रिलोचन' है।
प्रसंग — प्रस्तुत पद्यांश में शरद ऋतु की रात्रि व दिन के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या — शरद ऋतु की रात्रि का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि शरद् ऋतु की नवमी तिथि है। शीतल, मधुर रात्रि का समय है। अभी जाड़ा नहीं पड़ा है। बस ठंडी हवा से रोएॅ कॉपे हे। आज का दिन भी अजीब रहा है, रिमझिम, रिमझिम पानी बरसा है। फिर आकाश खुल गया, धूप छा गई। पूरा दिन यही नजारा रहा। काले, लाल, मटमैले बादल दिनभर छाए रहे। चॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है।
कुछ सुनती हो,कुछ गुनती हो,यह पवन, आज यों बार — बारखींचता तुम्हारा आॅचल हैजैसे जब तब छोटा देवरहमने — तुमने मिल कर सींचाफैली मनमोहन हरियालीधरती माता का रूप सजाउन परम सलोने पौदों कोहम दोनों ने मिल बड़ा कियातुम से हठ करता है जैसेतुम चलो जिधर वे हरे खेतवे हरे खेतहै याद तुम्हें?मैंने जोता, तुमने बोयाधीरे — धीरे अंकुर आएफिर और बड़ेजिनको नहलाते हैं बादलजिनको बहलाती है बयारवे हरे खेत कैसे होंगेकैसा होगा इस समय ढंगहोंगे सचेत या सोये सेवे हरे खेतचॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है।
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश — 'चॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है' नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि 'त्रिलोचन' है।
प्रसंग — गंगा तट की हरियाली एवम् हरे — भरे खेत का वर्णन किया है।
व्याख्या — कवि अपनी पत्नी को संबोधित करते हुए कहता हे कि आज चलने वाली ठंडी हवा तुम्हारा आॅचल खींच रही है, जैसे — छोटा देवर कहीं चलने के लिए आॅचल पकड़ता हुआ हठ कर रहा है। तुम चलो, देखो वो हरे — भरे खेत, जिन्हें मैंने जोता और तुमने बोया था। वे बीज अंकुरित हो गए हैं। धीरे — धीरे वे बड़े हो गए, हमने — तुमने मिलकर सींचा था। आज सर्वत्र हरियाली फैल चुकी है। धरती माता का रूप सज गया है। आज बादल अपनी वर्षा से उन्हें नहलाते है। हवा उनका मन बहलाती है। आज वे हरे — भरे खेत कैसे होंगे। चॉदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है।
कुछ कविताएॅ
अभिमन्यु अनंत (अप्रवासी भारतीय)
नयी सभ्यता
कल हमारी कुटियों में बिन पूछेतुफान दाखिल हो जाते थे,आज हमारे घरों में बिन दरवाजे खटखटाएजो चले आ रहे हैंउनसे हमारी दीवारे और छर्ते नहींहमारी बुनियाद चरमरा रही है।
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'नयी सभ्यता' कविता से अवतरित किया गया है। इसके कवि 'अभिमन्यु अनंत' है।
प्रसंग — प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने 'नयी सभ्यता' के आगमन की सूचना दी है।
व्याख्या — कवि कहता है कि तक हमारे यहॉ पश्चिमी सभ्यता का आगमन मात्र हुआ था, किन्तु आज हमारे यहॉ पश्चिमी सभ्यता पैर पसार चुकी है, जिससे हमारे घर की दीवार और छत ही नहीं, हमारी बुनियाद भी चरमरा गई है। हमारी अपनी सभ्यता उपेक्षा का शिकार हो रही है।
तृप्ति
तृप्तिमाथे की श्रम बूॅदों कोखेत में पहुॅचकर मजदूर ने बो दिया।लहलहाती फसल जब तैयार हुई,उन हरे — भरे दानों को किसी और नेतिजोरी के लिए बटोर लियाइसीलिए आक्रोश में आकरमजदूर सूरज को निगल गया।
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'तृप्ति' से अवतरित किया गया है। इसके कवि 'अभिमन्यु अनंत' है।
प्रसंग — प्रस्तुत पद्यांश में कृषकों की दयनीय स्थिति का वर्णन हुआ है।
व्याख्या — कवि कहता है कि मजदूर दिन — रात मेहनत करके खेतों में बीज बोता है, फसल तैयार करता है, किन्तु जब फसल आती है, तब जमींदार पूरी फसल बटोर लेता है। पूरी रकम तिजौरी में रख लेता हे। मजदूर को अपनी मजदूरी भी पर्याप्त नहीं मिलती है। फलत: आक्रोश में आकर वह सूरज निगल जाता है, अर्थात् विद्रोही हो जाता है।
खाली पेट
तुमने आदमी को खाली पेट दियाठीक किया।पर एक प्रश्न है रे नियति!खाली पेट वालों को, तुमने घुटने क्यों दिए?फैलने वाला हाथ क्यों दिया?
संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'खाली पेट' शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता कवि ' अभिमन्यु अनंत' है।
प्रसंग — कवि ने भिक्षावृत्ति पर कटाक्ष किया है।
व्याख्या — कवि कहता है कि हे ईश्वर! तुमने आदमी को खाली पेट दिया, यह ठीक किया, ताकि मेहनता कर वह अपना पेट भर सके। पर प्रश्न यह है कि खाली पेटवालों को तुमने घुटने क्यों दिए? फैलने वाले हाथ क्यों दिए? अर्थात् क्यों लोग मेहनत से जी चुराकर भीख मॉगने के लिए हाथ फैला रहे हैं। घुटने टेक रहे है।
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- चॉदनी चमकती है गंगा बहती जाती है। त्रिलोचन
- कुछ कविताएॅ। अभिमन्यु अनंत
उत्तर — आसमान में कजरारे, चंचल, काले—गहरे बादल उड़ रहे थे।
- आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे?
उत्तर — रिमझिम—रिमझिम पानी बरसने के बाद आसमान खुल गया है, धूप फिर से आ गई है।
- रिमझिम—रिमझिम पानी बरसने के बाद क्या हुआ?
उत्तर — कवि के अनुसार हवा बार—बार आॅचल को खींच रही है।
- कवि के अनुसार हवा बार—बार क्या कर रही है?
उत्तर — नई सम्भ्यता हमारी प्राचीन सभ्यता को विकृत बना रही है।
- कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप कैसा बतलाया है?
उत्तर — आक्रोश में आकर मजदूरों ने सूरज को निगल लिया।
- आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया?
उत्तर — बादलों के हटने पर तारे झिलमिल करते उज्जवल दिखाई पड़ते हैं। बादलों की ओट में तारे छिप जाते हैं तथा बादल हटने पर वे साफ नजर आ जाते है।
- बादलों के हटने पर तारे कैसे दिखलाई पड़ते हैं?
उत्तर — कवि के अनुसार दिन में कपसीले, ऊदे, लाल—पीले, मटमैल रंग के बादल दिखाई पड़ रहे थे।
- कवि के अनुसार दिन में किस तरह के बादल दिखलाई पड़ रहे थे?
उत्तर — कवि ने हरे खेतों के बारे में कल्पना की है कि वे हरे खेत, जहॉ हमने—तुमने मिलकर बीज बोए, पौधे को सींचा, उसे बड़ा किया, उसे फसल का रूप दिया। जिन्हें बादलों ने नहलाया, हवा ने बहलाया, न जाने वे हरे खेत कैसे होंगे।
- कवि ने हरे खेतों के बारे में क्या कल्पना की?
उत्तर — कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ जमींदार या बड़े कृषक को होता है, जो फसल पर पूरा अधिकार जमा लेता है। पूरी रकम से अपनी तिजौरी भर लेता है। बेचारा मजदूर अपनी पूरी मजदूरी भी नहीं पा सकता।
- कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ किसे प्राप्त होता है,
उत्तर — कवि नियति से यह प्रश्न करता है कि तुमने लोगों को खाली पेट दिया, अच्छा किया, किन्तु यह बताओ कि तुमने उन्हें घुटने क्यों दिए, फैलाने वाले हाथ क्यों दिए।
- कवि नियति से क्या प्रश्न करता है?
उत्तर — 'बुनियाद चरमराने— से आशय अपनी व्यवस्था, सभ्यता, परम्पराएॅ कमजोर होने से है। आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के आगमन से हमारी बुनियाद चरमराने लगी है। हम उसी का अंधानुकरण कर रहे है।
- 'बुनियाद चरमराने' से कवि का क्या तात्पर्य है,
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न —
उत्तर — शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि इस ऋतु में रात्रि अत्यन्त शीतल, मधुर हो गई है। ठंडी—ठंडी हवा जल रही है। दिन में भी कभी रिमझिम — रिमझिम बारिश हो जाती है।
- 'त्रिलोचन' की कविता में प्रस्तुत शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
थोड़ी देर वर्षा के बाद बादल फिर हट जाते हैं। धूप छट जाती है। धूप में भी तीक्ष्णता नहीं है। रात्रि में चॉदनी बिखर जाती है। गंगा तट अति सुहावना लगता है। आकाश में तारे झिलमिल दिखाई देते है।उत्तर — पुरानी सभ्यता परम्पराओं, रीति — रिवाजों पर आधारित है। जिसमें ठोस व्यवस्था है, संस्कार, नैतिकता को अधिक महत्व दिया जाता है, जिसमें मूल्यों की बात की जाती है, किन्तु नई सभ्यता भौतिकता, भोगवाद से युक्त है। इसमें नैतिक मूल्यों का पूर्णत: अभाव है। यह पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित है। इससे हमारी बुनियाद चरमराने लगी है।
- नई और पुरानी सभ्यता में कवि ने क्या अन्तर बतलाया है?
उत्तर — 'खाली पेट' कविता में कवि ने निर्यात से प्रश्न पूछा है कि तुमने लोगों को खाली पेट दिया, ठीक किया, ताकि मेहनत कर वे अपना पेट भर सके। किन्तु तुमने उन्हें घुटने क्यों दिए, फैलने वाले हाथ क्यों दिए? यहॉ कवि ने भिक्षावृत्ति पर कटाक्ष किया है। क्योंकि लोग घुटने टेककर, हाथ फैलाकर भीख मॉगते हैं। मेहनत से जी चुराते है।
- 'खाली पेट' कविता में निहित व्यंग्य को समझाइए।
उत्तर — 'तृप्ति' कविता के माध्यम से कवि ने कृषकों की दयंनीय दशा को उजागर किया है। छोटे कृषक खेतों में बीज बोते एवं फसल उगाते है। पसीना बहाकर दिन — रात मेहनत करते है, किन्तु फसल आने पर किसान या जमींदार पूरी फसल पर अपना अधिकार जमा लेते हैं। पूरी रकम तिजौरी में रख लेते हैं। मजदूरों को अपनी मजदूरी भी बराबर नहीं मिलती है।
- तुप्ति कविता के माध्यम से कवि ने किस विसंगति को उजागर किया है?
उत्तर — पवन के माध्यम से कवि यह संकेत देता है कि धीर — धीरे चलने वाली पवन से ऐसा लग रहा है कि तुम्हारे आॅचल को खींच रही है। जैसे — छोटा देवर आॅचल पकड़ कर तुमसे कोई हठ कर रहा है। हवा में चंचलता है, हठ है, शीतलता है।
- त्रिलोचन शास्त्री ने पवन के माध्यम से क्या संकेत दिया है?
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर —
उत्तर — 'तृप्ति' कविता में मानवीय श्रम के शोषण की चर्चा की गई है।
- 'तृप्ति' कविता में किसके शोषण की चर्चा की गई है?
उत्तर — 'खाली पेट' कविता में गरीबी का चित्रण है।
- 'खाली पेट' कविता में किस बात का चित्रण है?
उत्तर — 'नयी सभ्यता' कविता में कवि ने नवीन भाव — बोध पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की है।
- 'नयी सभ्यता' कविता में कवि ने किस बात पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की है?
सही सम्बन्ध स्थापित कीजिए —स्तम्भ अ स्तम्भ बउत्तर —
- सोये हुए बच्चों से (क) भारतेन्दु हरिशचन्द्र
- नीति — अष्टक (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
- वीरों का कैसा हो वसंत? (ग) डॉ. हरिवंशराय बच्चन
- पथ की पहचान (घ) अज्ञेय
- मैंने आहुति बनकर देखा (ड) हरिनारायण व्यास
- सोये हुए बच्चों से (ड) हरिनारायण व्यास
- नीति — अष्टक (क) भारतेन्दु हरिशचन्द्र
- वीरों का कैसा हो वसंत? (ख) सुभद्राकुमारी चौहान
- पथ की पहचान (ग) डॉ. हरिवंशराय बच्चन
- मैंने आहुति बनकर देखा (घ) अज्ञेय
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