लोकोक्तियाॅ

  • अंधे के हाथ बटेर लगना - अयोग्य व्यक्ति को बिना मेहनत के लाभ प्राप्त होना। 
प्रयोग - मोहन बहुत कम पढ़ाई करता था, पढ़ने में भी औसत था, किन्तु प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया। सचमुच अंधे के हाथ बटेर लग गई। 
  •  आग लगने पर कुआ खोदना - पहले से व्यवस्था न करना। 
प्रयोग - कल परीक्षा है और आज पुस्तक खरीदने जा रहे हो, इसे कहते हैं आग लगने पर कुआ खोदना। 
  • चोर की दाढ़ी में तिनका - अपराधी स्वयं शंकित रहता है। 
प्रयोग - मैनें तुम पर तो दोष लगाया नहीं, तुम क्यों सफाई देने लगे। मालूम होता है कि तुम्हीं ने उसवे मारा हैं। चोर की दाढ़ी में तिनका जो होता है। 
  • आॅख के अंधे नाम नैनसुख - गुण के विपरीत नाम।
प्रयोग - घर में हजार रूपये नहीं है, और नाम है - करोडीमल। इससे कहते हैं आॅख के अंधे नाम नैनसुख। 
  • अपनी-अपनी डफली, अपना - अपना राग - भिन्न लोगों के भिन्न मत। 
प्रयोग - सब एक साथ मिलकर कार्य करो। अपना-अपना राग अलापना छोड़ो, तभी देष का कल्याण हो सकता है। 
  • ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना - किसी कठिन कार्य को प्रारम्भ कर देने पर आने वाली बाधाओं से क्या डरना। 
प्रयोग - लड़ाई में जाने का आदेष प्राप्त कर मुझे कोई घबराहट नहीं हुई, क्योंकि सेना की नौकरी में जाने से पहले ही मैंने जान लिया था कि ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना। 
  • एक थैली के चट्टे - बट्टे - एक ही जैसे दुर्गण वाले।
प्रयोग - एक भाई चोर है तो दूसरा जुआरी। दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
  • कहाॅ राजा भोज, कहाॅ गंगू तेली - दो व्यक्त्यिों की स्थिति में बहुत अंतर होना। 
प्रयोग - कहाॅ वे करोड़पति हैं और कहाॅ हम साधारण मध्यवर्गीय। कहाॅ राजा भोज, कहाॅ गंगू तेली। 
  • काबुल में क्या गधे नहीं होते - अच्छी जगह साधारण व तुच्छ दोनों वस्तुएॅ मिलती है। 
प्रयेाग - कलेक्टर साहब के यहाॅ सभी बडे अफसर हैं, लेकिन उनका छोटा भाई क्लर्क है। सही कहा है - काबुल में क्या गधे नहीं होते। 
  • मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त - जिसका कार्य हो वह निष्क्रिय रहे और दूसरा व्यक्त् िअधिक परिश्रम करे।
प्रयोग - मैंने तुम्हारी नौकरी के लिए कलेक्टर साहब से कई बार बातें की, किन्तु तुम एक बार भी न बोले। अब नौकरी न मिली तो मैं क्या करूॅ। इसे कहते हैं - मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त।
  • जल में रहकर मगर से बैर - जिसके आश्रय में रहना है, उससे क्या बिगाड़ करना। 
प्रयोग - सास-ससुर के साथ रहना ही है तो उनसे झगड़ा करने से क्या फायदा। जल में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता है।
  • मन चंगा तो कठौति में गंगा - यदि मन शुद्ध है तो तीर्थ की जरूरत नहीं। 
प्रयोग - शरीर थक चुका है तो तीर्थ क्यों जाते हो? हृदय शुद्ध होना चाहिए - मन चंगा तो कठौति में गंगा।
  • होनहार बिरवान के होते चीकने पात - होनहार पुरूष के लक्षण बचपन में ही प्रकट हो जाते हैं। 
प्रयेाग - गाॅधीजी बचपन से ही सत्य, अहिंसा के पुजारी थे। आगे चलकर उन्होंने उन्होंने सम्पूर्ण विष्व को पाठ पढ़ाया। ठीक ही है, होनहार बिरवान के होत चीकने पात। 
  • का वर्षा जब कृषि सुखानी - अवसर जाने पर प्रयास करना बेकार है। 
प्रयोग - अग्निषामक यंत्र आया, तब तक आग पूरी तरह फैली चुकी थी। जलकर सब खाक हो गया। उसे देखकर लोगों ने कहा - का वर्षा जब कृषि सुखानी। 
  • थोथा चना बाजे घना - गुणहीन व्यक्ति अधिक प्रदर्षन करता है। 
प्रयोग - अषिक्षित होने पर भी राधा बहुत ज्ञानी बनती है। सच है - थोथा चना बाजे घना। 
  • डूबते को तिनके का सहारा - विपत्ति काल में थोड़ी मदद भी काफी है। 
प्रयोग - भाई, तुम्हारे इस थोड़े से धन ने मुझ डूबते को तिनके का सहारा दिया है। 
  • दूर के ढोल सुहावने होते हैं - दूर की वस्तु अच्छी लगती है। 
प्रयेाग - परदेष में रहने वाली बहू-सासू माॅ को ज्यादा अच्छी लगती है जबकि पास रहने वाली उतनी अच्छी नही। सही है - दूर के ढोल सुहावने होते है। 
  • नाच न जाने आॅगन टेढ़ा - स्वयं की अनुभवहीनता का दूसरों पर दोष मढ़ना। 
प्रयेाग - यह कहते हैं कि विद्यालय में पढ़ाई नहीं हुई। इसे कहते हैं - नाच न जाने आॅगन टेढ़ा। 
  • सौ सुनार की एक लुहार की - बलवान की एक चोट कमजोर की सैकड़ों चोट के बराबर होती है।
प्रयोग - राम ने मोहन से कहा - ‘‘तुम मुझे ज्यादा परेषान मत करो, याद रखो सौ सुनार की एक लुहार की होती है।‘‘
  • अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत - अवसर निकल जाने पर पष्चाताप व्यर्थ है। 
प्रयोग - रेल स्टेषन से जा चुकी है। अब दौड़-भाग करके स्टेषन की ओर भागने से क्या। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। 
  • जाकै पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई - स्वयं अनुभव न होने पर दूसरे के कष्ट का अनुमान नहीं होता। 
प्रयेाग - सीता राधा के दुःखदर्द और निर्धनता को क्या जाने, क्योंकि वह राधा के समान निर्धन नहीं है। ठीक ही कहा है - जाकै पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई।
  • जिसकी लाठी उसकी भैंस - बलवान सब कुछ कर सकता है।
प्रयोग - आज के समय में गरीबों का जीना कठिन है, क्योकि यहाॅ तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति है। 
  • ऊॅची दुकान, फीका पकवान - दिखावटी काम। 
प्रयोग - रामजीलाल ने दुकान का उद्घाटन बडे़ धूमधाम से किया। दुकान की चमक-दमक देखकर तो अच्छा लग रहा था, जब वहाॅ का सामान देखा, तो एकदम रद्दी! ठसे कहते हैं - ऊॅची, दुकान फीका पकवान।
  • एक अनार सौ बीमार - वस्तु एक, प्राप्त करने वाले उम्मीदवार अनेक। 
प्रयोग - पुस्तकालय में वस्तुनिष्ठ प्रष्नों पर एक ही पुस्तक है, किन्तु माॅगने वाले छात्र अनेक है। इसे कहते हैं - एक अनार सौ बीमार। 
  • जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं - अधिक बोलने वाले काम कम करते हैं। 
प्रयोग - मोहन की बड़ी लम्बी - चैड़ी बातों पर मुझे जरा भी विष्वास नहीं होता है, क्योंकि मैं इस तथ्य केा अच्छी तरह जानता हॅू कि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं हैं। 
  • अंधा पीसे, कुत्ता आटा खाय - कमाए कोई, खाए कोई। 
प्रयोग - मेहनत मजदूर करता है, और तिजोरी उद्याोगपति की भरती है। ठीक ही कहा गया है - अंधा पीसे, कुत्ता खाय। 
  • काला अक्षर भैंस बराबर - बिल्कुल अनपढ।
प्रयेाग - रामलाल बिल्कुल अनपढ़ है। वास्तव में, उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है। 

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