पाठ 8 कल्याण की राह (प्रश्न — उत्तर)

पाठ परिचय - उक्त पाठ में डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन और श्री नरेश मेहता की रचनाएं संकलित है अपनी 'पथ की पहचान' कविता में डॉक्टर बच्चन ने संकेत किया है कि जीवन का कल्याणमय पथ पर सत्कर्म में निष्ठा रखने से ही प्राप्त किया जा सकता है। जीवन का मर्म समझने के लिए हमें महापुरुषों के आदर्शों पर चलना होगा अपने कर्म पर दृढ़ विश्वास रखने वाला व्यक्ति ही पथ की विपदाओ पर  विजय प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति के स्वप्न तभी साकार होते हैं, जबकि उनका उनके साथ कर्म का सत्य जुड़ा हुआ हो। वस्तुतः जीवन की समग्रता सपने और कर्म के सामंजस्य में निहित है।
 कवि श्री नरेश मेहता ने अपनी कविता "चरैवेति जन गरबा" में हमें निरंतर कर्मशील बने रहने का संकेत किया है। यदि जीवन में क्रियाशीलता रहती है, तो सृजन की नयी संभावनाएँँ बनती है। यह सृजन समाज को उच्चता की ओर ले जाता है। कर्मशील व्यक्ति ही समृद्धि को प्राप्त करते हैं। गति हीनता मृत्यु है।

  1. पथ की पहचान - हरिवंशराय बच्चन।
  2. चरैवेति - जनगरबा - नरेश मेहता।

 अति लघु उत्तरीय -

  • प्रश्न - चलने के पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए? 
उत्तर - चलने के पूर्व बटोही को अपने पथ की पहचान कर लेना चाहिए। 
  • प्रश्न - कवि के अनुसार व्यक्ति को किस रास्ते पर चलना चाहिए ?
उत्तर - कवि के अनुसार व्यक्ति को किस मार्ग पर चलना चाहिए? 
  • प्रश्न - प्रत्येक सफल राहगीर क्या लेकर आगे बढ़ा है? 
उत्तर - प्रत्येक सफल राहगीर अपने पथ को अच्छा मानकर आगे बढ़ा है। 
  • प्रश्न - नरेश मेहता अपनी कविता में किसके साथ चलने की बात कह रहे हैं? 
उत्तर - नरेश मेहता अपनी कविता में वक्त एवं युग के साथ चलने की बात कह रहे हैं। 
  • प्रश्न - नदियां आगे चलकर किस रूप में परिवर्तित हो जाती हैं? 
उत्तर - नदियां आगे चलकर सागर में परिवर्तित हो जाती हैं। 
  • प्रश्न - कवि ने रुकने को किसका प्रतीक माना है? 
उत्तर - कवि ने रुकने को मरण के समान बताया है।

 लघु उत्तरीय प्रश्न - 

  • प्रश्न - कवि स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय क्यों देता है? 
उत्तर - कवि स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय इसलिए देता है क्योंकि स्वप्न एवं यथार्थ में फर्क होता है। यथार्थ से टकराकर स्वप्न टूट जाते हैं। स्वप्न दो हैं तो सत्य दो सौ। सपने में ही डूबे रहना, कल्पना में विचरण करना एवं यथार्थ से दूर रहना गलत है। सपने देखे अवश्य, किंतु पैर जमीन पर टिके हों। 
  • प्रश्न - कवि ने जीवन पथ में क्या-क्या अनिश्चित माना है? 
उत्तर - यह जीवनडगर अनिश्चित है, रास्ते में न जाने कब संकटों का सामना करना पड़ेगा, यह पता नहीं है। कब वन, बगीचे, पुष्प दिखेंगे, यह अनिश्चित है। यात्रा का अंत कब होगा, यह भी अनिश्चित है। कौन जीवन पथ पर बिछड़ जाएगा, कौन- सहसा मिल जाएगा, यह भी अनिश्चित है।
  • प्रश्न - कवि के अनुसार जीवन पथ के यात्री को पथ की पहचान क्यों आवश्यक है? 
उत्तर - कवि के अनुसार जीवन पथ के यात्री को पथ की पहचान इसलिए आवश्यक है, ताकि वह सही रास्ता चुन सके, गलत राह पर जाने से बच सकें। सही राह चुनना और उस पर बढ़ना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। पथ की पहचान पुस्तकों में उपलब्ध नहीं है और ना ही लोगों से पूछ कर इसकी जानकारी हासिल की जा सकती है।
  • प्रश्न - कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार कौन बैठा है और क्यों? 
उत्तर - कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार लक्ष्मी श्रृंगार किए बैठी हैं। कवि का आशय यह है कि वसुधा रत्नमयी है, ईश्वर ने हमें चलने के लिए चरण मेहनत के लिए हाथ दिए हैं। इनके द्वारा हम लक्ष्मी हासिल कर सकते हैं।
  • प्रश्न - मानव जिस ओर गया, उधर क्या क्या हुआ? 
उत्तर - मानव जिस और गया, उधर प्रगति हुई, जैसे - फूल बने, सड़क बनी, महल बनी, नगर वसे, तीर्थ बने। मानव ने अपनी बुद्धि एवं विवेक से बहुत प्रगति की है।

 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - 

  • प्रश्न - चलने के पूर्व बटोही को कवि किन किन बातों के लिए आगाह कर रहा है? 
उत्तर - कवि का कहना है कि चलने के पूर्व बटोही को पथ की पहचान कर लेना चाहिए। सही, गलत जानकार ही रास्ता चुनना चाहिए। जो पथ उचित, सही हो, उसी पर चलना चाहिए। पथ की जानकारी किताबों में नहीं छपी है, न ही दूसरों से इसकी जानकारी ली जा सकती है। हां! कुछ लोग इस राह पर चलकर अपने पदचिन्ह अवश्य छोड़ गए हैं, अतः उनके पद चिन्ह पर चलकर अपना रास्ता निश्चित कर ले। 
  • प्रश्न - स्वप्न और यथार्थ में संतुलन किस तरह आवश्यक है? स्पष्ट करें 
उत्तर - स्वप्न और यथार्थ में संतुलन आवश्यक है। स्वपन काल्पनिक होते हैं, उनमें कल्पना के रंग होते हैं, सपने यथार्थ से दूर होते हैं। सपने आंखों में ज्योति जलाते हैं, पैरों में पंख लग जाते हैं। यथार्थ सत्यता, वास्तविकता पर आधारित होता है। कभी-कभी सपने सच नहीं हो पाते हैं। यथार्थ के धरातल पर आकर टूट जाते हैं। इसलिए जीवन डगर में स्वप्न और यथार्थ में संतुलन होना चाहिए। आंखों में सपने हो, किंतु पैर जमीन पर टिके होना चाहिए। 
  • प्रश्न - "चरैवेति जन गरबा" कविता का मूल आशय क्या है ?
उत्तर - निधि जैन गरबा कविता का मूल भाव यह है कि व्यक्ति को वक्त के साथ साथ आगे बढ़ते जाना चाहिए। सूरज चंद्रमा रितु सभी अपनी कार्य नेत्रों से निरंतर करते रहते हैं, आता इन इन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए। मानव ने अपनी बुद्धि से नगर प्रसाद कामा महल बनाए कामा तीर्थ बनाएं काम आता है उसे नए युग के साथ साथ आगे बढ़ना चाहिए। 
  • प्रश्न -योग के संग संग चलने की सीख कवि क्यों दे रहा है? 
उत्तर - सभी का कहना है कि युग के साथ साथ आगे बढ़ना चाहिए। कदम से कदम मिलाना चाहिए कामा जो वक्त के साथ नहीं चलता है, पिछड़ जाता है। नए दौर के साथ हमें अपनी राय चुनना चाहिए। नई सोच नए विचार रखना चाहिए। योग के साथ अपने विचार कामा कार्य में बदलाव लाना चाहिए।
 

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