गद्य — भारती
पाठ — 3
परम्परा बनाम आधुनिकता (आचार्य हजारी प्रसाद 'द्विवेदी')
''परम्परा का अर्थ विशुद्ध अतीत नहीं है, बल्कि एक निरन्तर गतिशील जीवंत प्रक्रिया है। उसमें हमें जो कुछ मिलता है, उस पर खड़े होकर आगे के लिए कदम उठाते हैं। नीति — वाक्य में इसी बात को इस प्रकार कहा गया है — '' चलत्येकेन पादेन विष्ठत्येकेन बुद्धिमान्'' अर्थात् आदमी एक पैर से खड़ा रहता है, दूसरे से चलता है।''
सन्दर्भ — यह गद्यांश आचार्य हजारी प्रसाद 'द्विवेदी' द्वारा लिखित 'परम्परा बनाम आधुनिकता'' नामक निबन्ध से लिया गया है।
प्रसंग — इस गद्यांश में निबन्धकार ने 'परम्परा' शब्द की विवेचना करते हुए लिखा है —
व्याख्या — 'परम्परा' शब्द का शाब्दिक अर्थ है, एक से दूसरे को, दूसरे से तीसरे को दिया जाने वाला क्रम। कभी — कभी इसे अतीत के सभी आचार — विचारों का बोधक मान लिया जाता है, परन्तु परम्परा में सम्पूर्ण अतीत नहीं होता है। परम्परा का अर्थ बिल्कुल अतीत नही है। यह तो एक अनवरत चलने वाली जीवन्त प्रक्रिया है। परम्परा हमें पिछला और अगला संकेत देती है। परम्परा से हमें जो कुछ मिलता है, उस पर खड़े होकर बुद्धिमान पुरूष आगे के लिए कदम बढ़ाते हैं। नीति वाकय में कथन है — बुद्धिमान व्यक्ति् वही है, जो एक पेर से खड़ा रहता है, और दूसरे से चलता है।' उसका पिछला पैर परम्परा के पायदान पर खड़ा रहता है और अगला पैर आधुनिकता के पारयदान पर जाकर गिरता है। इस प्रकार दुनिया दो पैरों से चलती है। यह परम्परा और आधुनिकता को आधार बनाकर चलती है। केवल परम्परावादी आगे नहीं बढ़ सकता। केवल आधुनिकतावादी बिना आधार के लड़खड़ाकर गिर पड़ेगा। स्पष्ट है परम्परा और आधुनिकता में चोली — दामन का सम्बंध है।
विशेष — परम्परा का सही विवेचन।
''आधुनिकता संप्रदाय का विरोध करती है, क्योंकि आधुनिकता गतिशील प्रक्रिया है, 'समप्रदाय' स्थिति — संरक्षक। परन्तु परम्परा से आधुनिकता का वैसा विरोध नहीं होता। दोनों ही गतिशील प्रक्रियाएॅ हैं। दोनों में अन्तर केवल यह है कि परम्परा यात्रा के बीच पड़ा हुआ अंतिम चरण है, जबकि आधुनिकता आगे बढ़ा हुआ गतिशील कदम है।''
सन्दर्भ — प्रस्तुत गद्यांश डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित 'परम्परा बनाम आधुनिकता' शीर्षक निबन्ध से अवतरित है।
प्रसंग — इस गद्यांश में लेखक ने परम्परा और आधुनिकता में अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखा है —
व्याख्या — आधुनिकता को सम्प्रदाय के साथा नही जोड़ा जा सकता। दोनों में सामजस्य स्थापित नहीं किया जा सकता। आधुनिकता सदैव सम्प्रदाय की विरोधी रही है। कारण, आधुनिकता एक गतिशील प्रक्रिया है। यह समय के साथ मेंल — जोल करती हुई आगे बढ़ती जाती है। इसके विपरीत, सम्प्रदाय अपने स्थान पर जहॉ का तहॉ स्थित रहता है। यह अपनी स्थिति का समर्थक व संरक्षक रहता है। परन्तु आधुनिकता का परम्परा से कोई वैर या विरोध नहीं रहता है। ये दोनों ही गतिशील प्रक्रियाएॅ है। परम्पराएॅ आगे बढ़ती हैं, जिन्हें आधुनिकता एक कदम और आगे बढ़ाती है।'' दोनों में इंजिन और डिब्बों का तारतम्य है। रेल का इंजन आगे बढ़ता है, तो स्वाभाविक रूप से डिब्बे को भी आगे बढ़ना ही होगा। दोनों में अन्तर केवल इतना है कि परम्परा किसी यात्रा के बीच पड़ा अन्तिम चरण है, जबकि आधुनिकता आगे बढ़ा हुआ गतिशील चरण है। आधुनिकता का कार्य है — परम्परा की रेल को आगे बढ़ाना, उसे गति प्रदान करना।
विशेष — आधुनिकता एवं सम्प्रदाय के सामंजस्य के बारे में सही चित्रण।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें