पाठ — 7 सच्चा धर्म गद्य — भारती

 पाठ — 7
सच्चा धर्म (सेठ गोविन्ददास) गद्य — भारती 

सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएॅ — 

'' अहिल्या, शास्त्रों में सत्य और असत्य की व्याख्या बड़ी बारीकी से की गई है। अनेक बार सत्य के स्थान पर मिथ्या भाषण सतय से भी बड़ी वस्तु होती है। जीवन में धर्म से बड़ी कोई चीज नहीं है। धर्म की रक्षा यदि असत्य से होती है, तो असत्य सत्य से बड़ा हो जाता है। 

सन्दर्भ — उपर्युक्त गद्यांश हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार सेठ श्री गोविन्ददास द्वारा लिखित — ''सच्चा धर्म'' नामक एकांकी से उद्धृत किया गया है। 

प्रसंग — इस गद्यांश में पुरूषोत्तम अपनी पत्नी अहिल्या को सच्चे धर्म का स्वरूप बताते हुए कहते है — 

व्याख्या — अहिल्या, धर्म का मर्म बड़ी मुश्किल में समझ में आता है। धर्म का तत्व गहराई में निहित रहता है। फिर हमारे शास्त्रों में सत्य और असत्य की बड़ी सूक्ष्म ढंग से व्याख्या की गई है। वैसे सत्य, सत्य है और असत्य, असत्य है। परन्तु अनेक बार सत्य के स्थान पर असत्य भाषण सत्य से भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। जीवन में धर्म से बड़ा कोई भी नही होता है। धर्म व्यक्ति् का प्राण होता है। यदि इस धर्म की रक्षा असत्य से होती है, तो असत्य सत्य से कहीं अधिक ​बड़ा एवं महत्वपूर्ण होता है। यदि असत्य बोलने से सम्भाजी के प्राणों की रक्षा होती है, तो मुझे वही इष्ट हे, प्रिय हे। मैं इस स्थिति में सैनिकों के सामने असत्य बोलकर अपने मानव धर्म का निर्वाह करूॅगा। 

विशेष — 

  1. यहॉ पर एकांकीकार ने युग — धर्म की स्थापना करते हुए विषम परिस्थिति में असत्य को भी सत्य से अधिक महत्व प्रदान किया है। 
  2. भाषा सरल, सुबोध एवमु साहित्यिक है। 

''शास्त्रों में सत्य और असत्य की व्याख्या बड़ी बारीकी से की गई है। अनेक बार सत्य के स्थान पर मिथ्या भाषण सत्य से भी बड़ी बस्तु होती है। जीवन में धर्म से बड़ी कोई चीज नही है। धर्म की रक्षा यदि असत्य से होती है, तो असत्य सत्य से बड़ा हो जाता है।''

सन्दर्भ — उपयुक्त गद्यांश  हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार सेठ श्री गोविन्ददास द्वारा लिखित ''सच्चा धर्म'' नामक एकांकी से ली गई है। 

प्रसंग — इस गद्यांश में पुरूषोत्तम अपनी पत्नी अहिल्या को सच्चे धर्म का स्वरूप बताते हुए कहते हैं।

व्याख्या — धर्म का मर्म बड़ी मुश्किल से समझ में आता है। धर्म का तत्व गहराई में निहित रहता है। फिर हमारे शास्त्रों में सत्य और सत्य की बड़ी सूक्ष्म ढंग से व्याख्या की गई है। वैसे सत्य, सत्य है और असत्य, असत्य है। परन्तु अनेक बार सत्य के स्थान पर असत्य भाषण सत्य से भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। जीवन में धर्म से बड़ा कोई भी नहीं होता है, धर्म व्यक्ति् का प्राण होता है। यदि इस धर्म की रक्षा असत्य से होती है, तो असत्य सत्य से कहीं अधिक ​बड़ा एवं महत्वपूर्ण होता है। यदि असत्य बोलने से सम्भाजी के प्राणों की रक्षा होती है, तो मुझे वही इष्ट हे, प्रिय हे। मैं इस स्थिति में सैनिकों के सामने असत्य बोलकर अपने मानव धर्म का निर्वाह करूॅगा। 

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