पाठ — 9 परीक्षा (गद्य भारती)

 पाठ — 9 
परीक्षा (मुंशी प्रेमचन्द्र) गद्य भारती 

व्याख्या 

''महाशयों! मैनें आप लोगों को जो कष्ट दिया है, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। इस पद के लिए ऐसे पुरूष की आवश्यकता थी, जिसके हदय में दया हो और साथ — साथ आत्मबल। हदय वह, जो उदार हो! आत्मबल वह, जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे और इस रियासत के सौभाग्य से हमें ऐसा पुरूष मिल गया। ऐसे गुण वाले संसार मे कम हैं, और जो हैं, वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं, उन तक हमारी पहुॅच नहीं है। मैं रियासत के पण्डित जानकीनाथ — सा दीवान पाने पर बधाई देता हॅू।''

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाॅ सुविख्यात कहानीकार मुशी प्रेमचन्द्र द्वारा लिखित ‘परीक्षा‘ नाम कहानी से ली गई है।
प्रसंग - उक्त पंक्तियों मेें कहानीकार ने देवगढ रियासत के नव नियुक्त दीवान के सम्बन्ध में सार्वजनिक रूप से पूर्व दीवान सरदार सुजानसिंह द्वारा दी गई जानकारी का वर्णन करते हुए लिखा है -
व्याख्या - महाशयों! मैंने आप सबको देवगढ़ रियासत के नये दीवान के पद के योग्य व्यक्ति का चयन करने के लिए आमंत्रित किया था। अब चयन की प्रक्रिया सम्पन्न हो चुकी है। इस प्रक्रिया में आप लोगों को किसी प्रकार का कष्ट हुआ हो, तो मैं उसके लिए आपसे क्षमा चाहता हॅू। वस्तुतः किसी रियासत के दीवान का यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पद होता है। इस पद के लिए जिस सुयोग्य व्यक्ति की आवश्‍यकता थी, वह हमने चयन कर लिया है। इस महत्वपूर्ण पद के लिए हमें ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसके हदय में दया के साथ आत्मबल हो। वह व्यक्ति हदय से उदार और आत्मबल वाला होना अत्यन्त आवश्यक था। व्यक्ति में आत्मबल इसलिए होना चाहिए कि वह आपत्ति के समय उसका वीरतापूर्ण ढंग से मुकाबला कर सके। सौभाग्य से इस रियासत के लिए हमें होनहार व्यक्ति प्राप्त हो गया है। यथार्थतः ऐसे गुण वाले व्यक्ति दुनिया में बहुत कम मिलते है। यदि मिलते भी हैं तो वे यश चाहते हैं, बडे़ अभिमानी होते है। ऐसे व्यक्ति को हम नहीं चाहते थे। हमने बहुत कुछ परीक्षण कर रियासत के ही पण्डित जानकीनाथ को इस दीवान के पद के लिए चयन कर लिया है। मैं इस शुभ अवसर पर उन्हें अपनी ओर से बधाई देना चाहता हॅू।
विशेष - 
  1.  सरल, सुबोध एवं विवेचनात्मक शैली का प्रयोग।

 

पाठ — 9 परीक्षा, प्रश्न उत्तर 

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