पाठ - 10
बैल की बिक्री (सियाराम शरण ‘गुप्त‘)
सन्दर्भ प्रसंग सहित महत्वपूर्ण व्याख्याएॅ -
‘‘सेठ ज्वाला प्रसाद उन्हीं महाजर्ना में से थे। विधाता के वरदान से उनका धन अक्षय था। जिस किसान के पास पहुॅच जाता, जीवन - भर उसका साथ न छोड़ता। अपने स्वामी की तिजोरी में निरन्तर जाकर भी दरिंद्र की झोपड़ी की माथा उससे छोड़ी न जाती थी।‘‘
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा लिखित ‘‘बैल की बिक्री‘‘ नामक कहानी से अवतरित किया गया है।
प्रसंग - इस गद्यांश में कहानीकार ने मोहन के साहूकार सेठ ज्वाला प्रसाद की चारित्रिक विशेषता पर प्रकाश डालते हुए लिखा है -
व्याख्या - सेठ ज्वालाप्रसाद ऋण देने में सरल हदय और बसूल करने में अत्यन्त कठोर हदय थे। किसान की फसल बिगड़ने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। ब्याज सहित पूरा ऋण बसूल कर लेने के कारण उनके पास धन में कमी नही हो रही थी। उन्होंने जिस कर्जदार या किसान को एक बार ऋण दिया, वह उनके मायाजाल से निकल नहीं पाता था। वह व्यक्ति हमेशा ऋण में दबा रहता था। मोहन की भी यही स्थिति थी। वह भी सेठ ज्वालाप्रसाद के ऋण से मुक्त नहीं हो पा रहा था। मोहन के सिर पर नित्य प्रति कर्ज बढ़ रहा था। उधर सेठ ज्वालाप्रसाद की तिजोरी में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही थी।
‘‘मनुष्य अपने आपके विषय में जितना अज्ञानी है, कदाचित उतना और किसी विषय में नहीं है। बार - बार उसे बैल की सूरत याद आती। उसके ध्यान में आता मानो बिदा होते समय बैल भी उदास हो गया था। उसकी आंखो में आंसू छलक आए थे। बैल का विचार करता तो पिता का सूखा हुआ चेहरा सामने आ जाता। बैल और पिता मानो एक ही चित्र के दो रूप थे।‘‘
सन्दर्भ - उपर्युक्त गद्यांश ‘‘बैल की बिक्री ‘‘ नामक कहानी से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक श्री सियाराम शरण गुप्त है।
प्रसंग - उक्त गद्यांश में कहानीकार ने शिबू जब अपना एकमात्र बैल बेच देता है, तब उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए लिखा है -
व्याख्या - शिबू ने हठ करके अपना एकमात्र बैल बेच दिया। कभी इस बैल के प्रति उसकी उपेक्षापूर्ण दृष्टि थी। परन्तु अब हाट से लौटते समय उसकी बड़ी विचित्र स्थिति होने लगी। उसकी चाल में मन्दापन आ गया। उसका चित्त भी विचलित था। मन में सैकड़ो प्रकार के विचार आ रहे थे। बैल के बिना वह अपने आप को एकाकी महसूस करने लगा। अब अभाव की स्थिति में उसके मन का बैल के प्रति उसका सुप्त प्रेम आज उठा। यहाॅ पर कहानीकार इस सिद्धान्त का निरूपण करना चाहता है कि कई बार व्यक्ति को अपनी योग्यता या क्षमता का बोध ही नहीं रहता है, ज्ञान ही नहीं रहता है कि वह कुछ है। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति औरों के बारे में बहुत कुछ जानता है, परन्तु उसे अपने बारे में कुछ भी जानकारी नहीं रहती है। शिबू ने बैल बेच तो दिया, परन्तु अब उसकी महत्ता उसके ध्यान में आ रही थी। वह विचार करने लगता है कि जब बैल को बेचने के लिए हाट ले जाया जा रहा था, त बवह भी मेरे समान उदास होगा। इताना विचार करते हुए शिबू की आॅखे छलछला आई। अपने मन को थोड़ा कठोर करने पर शिबू को अपने पिता का स्मरण होने लगा। उसकी नजरों में पिता का सूखा हुआ चेहरा घूम गया। उसकी नजरों में कभी बैल का, तो कभी पिता का चेहरा मॅडराने लगा।
ईश्वर ने उसके स्वच्छंद विचरण के पथ में एक सुविधा और कर रखी थी। घर वालों के साथ उसका वही सम्बन्ध जान पड़ता था, जो खेती के साथ उन बादलों का होता है जिनके दर्शन ही नहीं होते। यदि कभी होते भी हैं तो आए हुए धान्य को सड़ा देने के लिए।
सन्दर्भ - उपर्युक्त गद्यांश ‘‘बैल की बिक्री ‘‘ नामक कहानी से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक श्री सियाराम शरण गुप्त है।
प्रसंग - बारिश से होने वाली परेशानी का वर्णन करते हुए लेखक ने बैल की परेशानी व्यक्त की है।
व्याख्या - बैल के लिए आराम से घूमने की जगह थी उस बैल का सम्बन्ध परिवार वालों से बताने के लिए लेखक ने खेती और बादलों से तुलना की है। जैसे - खेती के लिए बारिश के पानी की आवश्यकता होती है लेकिन खेती के बाद होने वाली बारिश से फसल गीली होकर सड़ जाती है। ठीक उसी प्रकार बैल के लिए घर वालों का होना या न होना एक समान ही था क्योकि उनके होने पर भी उसे कष्ट उठाने पड़ते थे।
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