पाठ — 11 मन की एकाग्रता प्रश्न — उत्तर

पाठ — 11 
मन की एकाग्रता
अति लघुउत्तरीय प्रश्न — 

  • छात्रों की क्या समस्याएॅ हैं?
उत्तर — आज के छात्रों या विद्यार्थियों की अपनी कुछ समस्याएॅ है। उनमें एकाग्रता का सर्वथा अभाव है। इसे मनोनिग्रह, स्थितप्रज्ञता या निश्यचातमक बुद्धि भी कहा जा सकता है। 
  • स्थितप्रज्ञता कैसे प्राप्त होती है?
जब व्यक्ति या साधक का मन और इन्द्रियॉ संयमित हो जाते हैं, तब स्थितप्रज्ञता प्राप्त होती है। 
  • मन कितने प्रकार से उत्तेजित होता है?
उत्तर — व्यक्ति का मन दो प्रकार से उत्तेजित होता है — (1) बाहर के विषयों से और (2) भीतर की वासनाओं और स्मृतियों से। 
  • गीता में 'परं' का अर्थ क्या है?
उत्तर — गीता में 'परं' का अर्थ परमात्मा है। यह सारा विश्व ईश्वर ही है — वासुदेव: सर्वम्। 

लघु उत्तरीय प्रश्न — 

  • अर्जुन की स्वीकारोक्ति को लिखिए। 
उत्तर — अर्जुन की यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि चंचल मन का निग्रह वायु की गति को रोकने के समान दुष्कर है — अत्यन्त कठिन कार्य है। 
मन को एकाग्र करने के प्रमुख बाह्य साधन है — (1) मन को विषयों के पास न ले जाएॅ, (2) उसमें रहने वाली कामनाओं या इच्छाओं को नष्ट किया जाए। 
  • छात्र की समस्याएॅ कौन — कौन सी हैं?
उत्तर — छात्र जीवन सहज एवं स्वाभाविक होता है। इस जीवन में अनेक समस्याएॅ आ खड़ी होती है। प्रमुख समस्या यह है कि व्यर्थ के विचार — चक्र से उनकी बुद्धि अस्थिर और मन चंचल बना रहता है। 
  • इन्द्रियों का कार्य क्या होना चाहिए?
उत्तर — इन्द्रियों का अपना कार्य होता है। इनका विषय — सेवन आसक्ति और द्वेष से युक्त नहीं होना चाहिए। इन्द्रियों के विषय भोग सदैव नियंत्रित रहने चाहिए। हम भोगों को नहीं भोगते हैं, अपितु भोग स्वयं हमें भेागते हैं। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न — 

  • संयम को समझाइए। 
उत्तर — संयम का अर्थ है — नियंत्रण, निग्रह, अनुशासन, मर्यादा। मानव — मन अत्यन्त चंचल होता है। आन्तरिक मनश्चक्र की गति अनियंत्रित वेग से चलती रहती है। ऐसी स्थिति में यम, नियम, आसन, प्राणायम आदि यौगिक क्रियाएॅ कुछ क्षण के​ लिए मन को एकाग्र कर सकती हैं। मन की पूर्ण और स्थायी एकाग्रता के लिए इन्द्रियों और मन दोनों का संयमित होना अत्यन्त आवश्यक है। तभी व्यक्ति शांति का अनुभव कर सकता है। 
  • परं उच्च लक्ष्य का तात्पर्य क्या है?
उत्तर — मानव का उत्कृष्ट लक्ष्य परं तत्व या परमात्मा की प्राप्ति होनी चाहिए। यह विश्व ईश्वरमय है। ईश्वर सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है। सम्पूर्ण विश्व ईश्वर में समाहित है। ईश्वर और विश्व अभिन्न हैं। यदि हम उस परं तत्व को प्राप्त करना चाहते है, तो हम प्राणीमात्र के प्रति सेवाभाव रखें। सब जीवों को समान दृष्टि से देखें। तभी हमारे मन की वासनाएॅ शुद्ध रहेंगी। 

भाषा — अध्ययन 

  • विलोम शब्द लिखिए — एकाग्रता, राग, अनाचार। 
उत्तर — 
  1. एकाग्रता — व्याग्रता
  2. राग — विराग 
  3. अनाचार — आचार
  • दो — दो पर्यायवाची शब्द लिखिए — चंचल, कामनाएॅ, निग्रह। 
उत्तर — 
  1. चंचल — अस्थिर, गतिमान।
  2. कामनाएॅ — इच्छाएॅ, वासनाएॅ।
  3. निग्रह — संयम, नियंत्रण।
  • उपसर्ग का नाम उल्लेख कीजिए — विचलन, निग्रह, संतुष्ट, प्रज्ञ, परिभाषित, नियन्त्रित।
  1. विचलन — वि + चलन ('वि' उपसर्ग)
  2. निग्रह — नि + ग्रह ('नि' उपसर्ग)
  3. संतुष्ट — सम्  + तुष्ट ('सम्' उपसर्ग)
  4. प्रज्ञ — प्र  + ज्ञ ('प्र' उपसर्ग)
  5. परिभाषित — परि  + भाषित ('परि' उपसर्ग)
  6. नियन्त्रित — नि  + यन्त्रित ('नि' उपसर्ग)
  • समास विग्रह कर नाम बताइए — अशक्य, बहिर्मुख, लोक — संग्रह। 
उत्तर — 
  1. अशक्य — शक्य (तत्पुरूष समास)
  2. बर्हिर्मुख — बहि: मुख (कर्मधारय समास)
  3. लोक — संग्रह — लोक का संग्रह (षष्ठी तत्पुरूष समास)

 

 मन की एकाग्रता (व्याख्या)

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