बेकारी की समस्या

बेकारी की समस्या

वर्तमान समय में भारत के सामने अनेक समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं। इन समस्याओं में सबसे विकराल है-बेकारी की समस्या। बेकारी की समस्या का आरंभ तो उसी दिन से हो गया था जिस दिन से अंग्रेज़ों की ललचाई नज़रें भारत की ओर लगी थीं। अंग्रेज़ों ने भारत की जड़ें खोखली कर दी। भारत का कच्चा माल इंग्लैंड भेजा तथा वहाँ से तैयार माल मँगवाकर भारतीय बाजारों में बहुतायत कर दी। फलस्वरूप भारतीय उद्योग-धंधे नष्ट हो गए, भारतीय कारीगर बेकार हो गए, किंतु अंग्रेज़ों की आत्मा को केवल इतने में ही संतुष्टि नहीं हुई। अतः उन्होंने एक और चाल चली। भारत में लार्ड मैकाले ने ऐसी शिक्षा पद्धति आरंभ कर दी जिससे सस्ते क्लर्क उत्पन्न हो सकें। उसने भारतीय नागरिकों में बाबूगिरी की ऐसी प्रवृत्ति कृट-कूट कर भर दी। फलस्वरूप बेरोज़गारी की कतारें लंबी होती चली गईं।

  1. पहले वर्ग में शिक्षित, प्रशिक्षित व्यक्ति आते हैं। 
  2. दूसरे वर्ग में अशिक्षित व्यक्ति आते हैं। 
  3. तीसरे वर्ग में ऐसे व्यक्ति आते हैं जो काम तो करते हैं, किंतु वर्ष के केवल कुछ ही महीने। 
  4. चौथे वर्ग में ऐसे व्यक्ति शामिल किए जा सकते हैं जिन्हें काम तो मिलता है, किंतु उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं। अत: वे असंतुष्ट रहकर ही जीवन निर्वाह करते हैं।

            अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आखिर यह बेकारी का ग्रहण भारत में स्वाधीनता के 70 वर्षों के बाद आज भी क्यों लगा हुआ है? इसके लिए निम्न कारणों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है –

  1. भारत में हर वर्ष एक नया आस्ट्रेलिया जन्म लेता है। इसी कारण हर वर्ष नए लोग बेकारों की सूची में अपना नाम दर्ज कराते हैं क्योंकि इतने लोगों के लिए रोजगार का प्रबंध करना भारत जैसे निर्धन देश की सामर्थ्य से बाहर है। अतः जनवृद्धि बेकारी का मूल कारण है। 
  2. हमारी दृषित शिक्षा प्रणाली भी इस समस्या के लिए कम उत्तरदायी नहीं है क्योंकि हम आज तक लकीर के फकीर बनकर अंग्रेजों द्वारा थोपी गई शिक्षा प्रणाली को ही चलाते रहे हैं, जिससे ‘कलम के बाबू’ तो मिले, किंतु देश के कर्णधार नहीं। 
  3. भारत की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है, किंतु गाँवों से शहरों की ओर पलायन की बढ़ती प्रवृत्ति भी बेकारी की वृद्धि में सहायक सिद्ध हुई है। 
  4. मशीनीकरण भी बेकारी का एक मूल कारण है। एक मशीन अकेले ही 40-50 व्यक्तियों का काम निबटा देती है। अतः बड़ी बड़ी मशीनों के विकास से कुटीर उद्योगों को भारी धक्का पहुँचा है वे बेकार पड़ी हैं।

इसके अतिरिक्त शासन की दुर्व्यवस्था, भाग्यवाद की पराकाष्ठा आदि भी बेकारी के कारण हैं। बेकारी की समस्या हमारे देश में कैंसर की भाँति बढ़ती चली जा रही है। इसी समस्या के कारण ही अनेक अन्य समस्याएँ जैसे अनुशा
            सनहीनता, भ्रष्टाचार, अराजकता आदि उत्पन्न होती है। जैसा कि कहा भी गया है – “खाली दिमाग शैतान का घर।” इसी बेकारी के कारण ही समाज में अस्त-व्यस्तता आती है। अनेक युवक अपना अमूल्य समय भिक्षावृत्ति के लिए भेंट चढ़ा देते हैं, जबकि युवतियाँ अपने यौवन को लुटाती हुई अपने पेट की अग्नि शांत करने में प्रयासरत दिखाई पड़ती हैं। अतः बेकारी कुकृत्यों को जन्म देती है। अब चिंतनीय विषय यह है कि बेकारी के उस रोग का अंत कैसे हो? हमारी सरकार इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही है. जैसे शिक्षा-पद्धति में सुधार किया गया है। सारे देश में 10 + 2 + 3 पद्धति शुरू करके शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जा रहा है।
            नए कुटीर उद्योग का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं में बेकारी उन्मूलन की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। स्वयं जनता को भी प्रयास करना होगा। सर्वप्रथम, लोगों को अपनी मनोवृत्ति को परिवर्तित करना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि शारीरिक श्रम के उपरांत रक्त-स्वेद सिक्त रोटी खाने में जो आनंद है, वह पकी-पकाई रोटी खाने में नहीं। अतः यदि लोग श्रम का महत्त्व समझें, झूठा स्वाभिमान त्याग दें, शहरों का मोह न पालें, तो इस समस्या की क्या मजाल जो यह हमारे देश से नौ दो ग्यारह न हो जाए।
            इसमें संदेह नहीं कि भारत में इस समस्या को सुलझाने के लिए अनेक ठोस कदम उठाए गए हैं। अतः हमें पूर्ण विश्वास है कि वह दिन शीघ्र ही आएगा जब भारत से बेकारी का नामोनिशान तक मिट जाएगा, भारत फिर से विश्व का अग्रगण्य देश बन जाएगा। .


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