पाठ — 2 वात्सल्य — भाव (व्याख्या) पद्य — भारती

 पाठ — 2 
पद्य — भारती 
वात्सल्य — भाव (व्याख्या)
कवितावली (तुलसीदस)

पद्यांशो की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या — 

अवधेस के द्वारे सकारे गई, सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवललोकि हौं सोच विमोचन को, ठगि सी रही जे न ठगे धिक से।।
तुलसी मन — रंजन रंजित अंजन, नैन सुखंजन — जातक से।
सजनी ससि में समसील उभै, नवनील सरोरूह से निकसे।।

संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'कवितावली' से अवतरित किया गया है। इसके कवि तुलसीदास हैं।

प्रसंग — यहॉ कवि ने शोक — विमोचन भगवान राम की बाल्यावस्था का वर्णन किया है। 

व्याख्या — तुलसीदासजी कहते हैं कि सखी कहती है — जब मैं आज अवधेस के द्वारे गई तो उसी समय भूपति गोद में बच्चे लिए बाहर निकले। मैं शोक — विमोचन को देखकर ठंगी — सी रह गई। मेरी नजरें उस बालक पर स्थिर हो गई। खंजन — जातक सी शोक — विमोचन की आॅखे जो अंजन से रॅगी गई है, जो मन प्रसन्न करने वाली है। वे चंद्रमा से टॅके समशील दो नवीन नीलकमल के समान विकसित है। खंजन पक्षी बहुत ही चंचल होता है। उसकी चंचलता बड़ी सुंदर होती है, अतएव आॅखों से उसकी तुलना की जाती है।  

विशेष — 

  1. शोक — विमोचन अर्थात् शोक हरने वाला। 
  2. विरोधाभास अलंकार है।

 पग नुपूर ओ पहॅुची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएॅ।
नवनील कलेवर पीत झॅगा, झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएॅ।
अरबिंदु सो आननु रूप मरदु, अनंदित लोचन भृंग पिएॅ।
मनमों न बसयौ अस बालकु जौ तुलसी जग में फलु कौन जिए।।

संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'कवितावली' से अवतरित किया गया है। इसके कवि तुलसीदास हैं।

प्रसंग — यहॉ कवि ने शोक — विमोचन भगवान राम की बाल्यावस्था का वर्णन किया है। 

व्याख्या — उस बालक के पैरों में नुपूर बॅधे हैं, हदय पर मणिमाला शोभित है। श्याम शरीर पर पीला झगा (बालक का वस्त्र) शोभित हो रहा है। उस बालक को गोद में लेकर राजा रोमांचित हो रहे हैं। उस बालक का मुख कमल के समान है। उसका रूप मकरंद के समान है। राजा के नेत्ररूपी भ्रमर उसका पान आनंदित होकर कर रहे हैं। तुलसीदास का मत है कि ऐसा बालक यदि मन में नहीं बसा, तो ऐसे जीवन का क्या फल? यह जीवन किस काम का?

विशेष — 

  1. शोक — विमोचन अर्थात् शोक हरने वाला। 
  2. विरोधाभास अलंकार है।

तनकी दुति सयाम सरोरूह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरिभरे छवि भूरि अनंगकी दूरी धरै।
दमकै दतियॉ दुति दामिनि जयौं किलकैं कल बालविनोद करै।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी — मन मंदिर में बिहरैं।।
कबहूॅ ससि मॉगत आरि करैं कबहूॅ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूॅ करताल बजाइकैं नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।
कबहूॅ रिसिआइ कहैं हठिकैं पुनि लेत सोई जेहि ला​गि अरैं।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी मनमंदिर में बिहरै। ।
वर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर पल्लव खोलन की। 
चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की। 
घुॅघरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलन की।
नेवछावरि प्रान करै तुलसी बलि जाऊॅ लाल इन बोलन की।।

संदर्भ — प्रस्तुत पद्यांश 'कवितावली' से अवतरित किया गया है। इसके कवि तुलसीदास हैं। 

प्रसंग — प्रस्तुत पद्य में बालक राम की बाल — क्रीड़ाओं का वर्णन है। 

व्याख्या — शरीर की शोभा नीलकमल के समान है। उसके नेत्र कमल के सौन्दर्य का हरण करते है। धूल से भरे वे अत्यधिक शोभित दिखाई देते हैं। कामदेव का सौन्दर्य भी उनके आगे फीका हैं। उनके दॉत बिजली के समान चमक रहे हैं। बालक राम किलकारी मारते हुए खेल रहे है। अवधेस, राजा दशरथ के ये चार बालक तु​लसी के मन रूपी मंदिर में सदा विहार करते हैं।

         कभी बालक राम, चंद्रमा मॉगते हैं, न मिलने पर हठ करते है। कभी अपनी ही परछाई देखकर डर जाते हैं। कभी ताली बजाकर नाचते हैं, जिससे सभी माताओं का हदय आनंदित हो जाता है। कभी क्रोध करके हठ करते हैं। पुन: वही चीज लेते हैं। तुलसी के मनमंदिर में अवधेस के ये चारों बालक सदा विहार करते है।

         उनकी सुंदर दं​तपंक्ति कुंदकली के समान है। दोनों होंठ नवीन पत्तों के समान लाल व पतले हैं। उनके गले में मोतियों की माला ऐसी शोभायमान हो रही हैं, जैसे — बादलों के बीच बिजली चमक रही है। मुॅह पर घुॅघराली लटे हैं, गालों पर कुंडल लटक रहे है। तुलसीदास कहते हैं कि बालक राम की मीठी — मीठी बोली पर मैं अपन प्राण न्यौछावर करता हूॅ। 

सोए हुए बच्चे से (हरिनारयण व्यास)
पद्यांशो की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या 

मेरे ख्याल इतने सूबसूरत नहीं हैं
जिनको मैं फूलों सी खूबसूरत तुम्हारी पलकों को 
छुआ दूॅ और ये तुम्हारे लिए
खूबसूरत सपने बन जाएॅ।
ये ख्याल इन दुनियादारी की
लपटों से झुलस गए हैं
पहाड़ों से टकराती नाव हैं,
नाकामयाबी की चोट से 
ये लहूलुहान हैं।
तितली की पॉखों सी 
तुम्हारी आॅखों में उगते हुए उजाले के 
इंद्रधनुष सपने 
इनमें फॅसकर बिखर जाएॅगें।

संदर्भ — प्रस्तुत पंक्तियों 'सोए हुए बच्चे से' नामक कविता से अव​तरित हैं। इनके कवि श्री हरि — नारायण व्यास है। 

प्रसंग — कवि ने सोते हुए बच्चे को संबोधित करते हुए कहा है कि सपने हकीकत से परे होते हैं। 

व्याख्या — कवि ने सोते हुए बच्चे को संबोधित करते हुए कहा है मेरे ख्याल इतने खूबसूरत नहीं हैं कि मैं फूलों से खूबसूरत तुम्हारी पलकों पर उन्हें सजा दूॅ और वे तुम्हारे लिए खूबसूरत सपने बन जाएॅ। मेरे ख्याल दुनियादारी की चपेट में आकार झुलस गए हैं। जिस प्रकार नाव पहाड़ से टकराकर नष्ट हो जाती है, ठीक उसी प्रकार संसार में उलझते — झुलसते मेरे ख्याल लहुलुहान हो गए हैं। तितली के पंखों के समान कोमल, रंगीले तुम्हारे इंद्रधनुषी सपने दुनियादारी में उलझकर बिखर जाएॅगें। 

बिवाई वाली इन पथरीली हथेलियों से 
तुम्हारे रेशमी बालों की 
शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूॅगा।
फटी हुई चमड़ी में उलझकर 
कोई बाल कोई रंगीन मनसूबा कोई
कामयाब भविष्य 
टूट जाएगा
आने वाला जमाना 
मुझे दोषी ठहराएगा।

संदर्भ — प्रस्तुत पंक्तियों 'सोए हुए बच्चे से' नामक कविता से अव​तरित हैं। इनके कवि श्री हरि — नारायण व्यास है।

प्रसंग — कवि कहता है कि पिता अपनी दुर्दशा को कभी भी पुत्र के मार्ग की बाधा नहं बनने देना चाहता है। 

व्याख्या — कवि स्वयं को पिता मानते हुए अपने सोए हुए बच्चे से कहता है कि मैं अपनी बिवाई वाली पथरीली हथेलियों से तुम्हारे रेशमी बालों को स्पर्श नहीं करूॅगा। हो सकता हे कि फटी हुई चमड़ी में उलझकर कोई बाल, कोई रंगीन मनसूबा, कोई कामयाब भविष्य टूट जाए। मेरी विवशता, दुरावस्था, दुर्दशा तुम्हारे सपनों के मार्ग में बाधा न बने, ऐसा मेरा प्रयास हे, वरना आने वाला जमाना मुझे दोषी ठहराएगा।  

तुम्हारी पलकों में तैरती 
उनींदी पुतलियों पर 
सेमल की रूई — सी
सुबह की नींद 
जागने से पहले की खुमारी
मॅडरा रही है
और तुम्हारा मन 
आतुर है कुलॉचे भरने।
हम तुमसे ही अपनी अहमियत
पहचानते हैं
तुम हो इसीलिए तो हमारी
भूख प्यास
मकसद रखती है।
मैं तुम्हारे गालों को 
बीमार ओठों की छुअन से नहीं जलाऊॅगा।
तुम इसी तरह मुस्कुराते सोये रहो
सूरज खुद तुम्हें जगाएगा।

संदर्भ — प्रस्तुत पंक्तियों 'सोए हुए बच्चे से' नामक कविता से अव​तरित हैं। इनके कवि श्री हरि — नारायण व्यास है।

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने सोए हुए पुत्र को अपने जीवन का मकसद बताया है। 

व्याख्या — कवि कहता है कि तुम्हारी पलकें उनींदी — सी हे। इन पलकों पर अनेक ख्वाब सजाएॅ हुए हैं। तुम्हारा मन कुलॉचे भरने के लिए आतुर है। अपने सोए हुए पुत्र को सहलाते हुए वह कहता है कि तुम्हीं हमारे जीवन का मकसद हो। तुमसे ही हम अपनी अ​हमियत पहचानते हैं। मैं बीमार यण तुम्हारे गालों को भी स्पर्श नहीं करूॅगा। तुम इसी तरह मुस्कुराते हुए सोये रहो, सूरज खुद तुम्हें जगाएगा।  

पाठ — 2 वात्सल्य — भाव (प्रश्न — उत्तर) 

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